सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की कठोर आलोचना करते हुए इसे समाज के लिए गंभीर खतरा बताया है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सरकार और राजनीतिक दलों के शीर्ष पदों पर बैठे भ्रष्ट व्यक्ति समाज के लिए भाड़े के हत्यारों से भी अधिक खतरनाक हैं।
पीठ ने यह टिप्पणी पंजाब सरकार में ऑडिट इंस्पेक्टर देविंदर कुमार बंसल की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की। बंसल पर आरोप है कि उन्होंने ग्राम पंचायत द्वारा किए गए विकास कार्यों के ऑडिट के बदले रिश्वत मांगी थी।
भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
पीठ ने कहा, "यदि किसी से पूछा जाए कि समाज की समृद्धि और विकास को अवरुद्ध करने वाला सबसे बड़ा कारक क्या है, तो निस्संदेह उत्तर भ्रष्टाचार ही होगा।" अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेष रूप से उच्च पदों पर बैठे लोगों के बीच भ्रष्टाचार को दंड से मुक्त छोड़ दिया जाता है, जिससे जनता का प्रशासन पर विश्वास कमजोर होता है और आर्थिक अस्थिरता पैदा होती है।
मंगलवार को दिए गए अपने फैसले में अदालत ने कहा, "यदि व्यापक भ्रष्टाचार की आम धारणा का कोई अंश भी सत्य है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि इसी भ्रष्टाचार के कारण देश में आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ है।"
ब्रिटिश विचारक एडमंड बर्क के उद्धरण का संदर्भ
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को जोड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटिश राजनेता एडमंड बर्क के शब्दों को उद्धृत किया, "सामान्य रूप से भ्रष्ट लोगों के बीच, स्वतंत्रता अधिक समय तक नहीं टिक सकती।" कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि भ्रष्टाचार के स्पष्ट दुष्परिणामों के बावजूद इसे रोकने के लिए प्रभावी उपाय नहीं किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में अग्रिम जमानत देने के लिए कड़े मानदंड निर्धारित किए हैं। अदालत ने कहा कि यह राहत केवल उन्हीं "असाधारण परिस्थितियों में" दी जानी चाहिए, जहां प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता हो कि आरोपी को गलत तरीके से फंसाया गया है, या आरोप राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित हैं।
पीठ ने स्पष्ट किया कि बंसल का मामला इन शर्तों को पूरा नहीं करता, इसलिए उनकी जमानत याचिका खारिज करना उचित है।
अदालत ने कहा कि "कभी-कभी अभियुक्त की स्वतंत्रता पर अत्यधिक जोर देना सार्वजनिक न्याय के उद्देश्य को बाधित कर सकता है। यदि भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना के लिए किसी अभियुक्त को स्वतंत्रता से वंचित करना आवश्यक हो, तो अदालतें इसमें संकोच नहीं करेंगी।" सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए रिश्वत के प्रत्यक्ष लेन-देन का प्रमाण आवश्यक नहीं है। सरकारी अधिकारी यदि स्वयं रिश्वत न लेकर बिचौलियों या एजेंटों के माध्यम से अवैध लाभ प्राप्त करते हैं, तो वे भी दंड के पात्र हैं।
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