कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बड़ा हमला बोला है। वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी बिना बुलाए अमेरिका जाते हैं और वहां राष्ट्रीय सम्मान से समझौता कर लेते हैं। खेड़ा ने दावा किया कि जब डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के लिए उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था, तब भी वह अमेरिका पहुंचे।
पवन खेड़ा ने कहा, "बिना बुलाए चले जाते हैं… जब ट्रंप का शपथ ग्रहण था, तब भी बुलावा नहीं था, फिर भी वहां पहुंचे। आखिर क्यों गए? यह एक जांच का विषय है।" उन्होंने आगे कहा कि जब मंच से तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की बात कर रहे थे, तब पीएम मोदी खामोश खड़े बस मुस्कुरा रहे थे।
"यह सीधा-सीधा अपमान था, एक खुली धमकी थी, और हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ खिसियानी मुस्कान के साथ खड़े थे। या तो उन्हें समझ नहीं आया कि ट्रंप क्या कह रहे थे, या फिर वे कोई प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं थे।"
USAID फंडिंग पर राजनीतिक संग्राम: मोदी सरकार पर उठे गंभीर सवाल
पवन खेड़ा ने कहा कि पिछले एक हफ्ते से एक कहानी तेजी से फैलाई जा रही है कि अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) ने नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग दी। यह आरोप जितना गंभीर है, उतना ही सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है।
अगर भारत में इतनी मजबूत खुफिया एजेंसियों के होते हुए भी सरकार को 21 मिलियन डॉलर की इस कथित फंडिंग की भनक तक नहीं लगी, तो यह देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बेहद शर्मनाक स्थिति है। लेकिन जब इस मामले पर मोदी सरकार से जवाब मांगा गया, तो उनकी ओर से कहा गया कि यह पैसा 2012 में UPA सरकार के दौरान आया था।
इस तर्क ने कई और सवाल खड़े कर दिए—अगर यह पैसा 2012 में आया था, तो क्या 2014 में भाजपा इसी फंडिंग के सहारे सत्ता में आई थी? वास्तविकता यह है कि USAID के ये 21 मिलियन डॉलर भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के एनजीओ को मिले हैं।
कभी भारत के प्रधानमंत्री के पद की इतनी प्रतिष्ठा थी कि अमेरिका को भी भारत के दबाव में आना पड़ता था, लेकिन आज हालात यह हैं कि अमेरिका से बांग्लादेश में 21 मिलियन डॉलर भेज दिए गए और नरेंद्र मोदी सरकार को इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी।
सरकार की खुफिया नाकामी पर उठते सवाल
यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार की खुफिया एजेंसियां और सूचना तंत्र आखिर कर क्या रहे हैं? अगर बांग्लादेश में अस्थिरता आती है, तो इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा, लेकिन सरकार इस पर मौन है। अमेरिका के साथ मोदी सरकार के रिश्तों पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं।
नरेंद्र मोदी जब अमेरिका गए, तो डोनाल्ड ट्रंप ने खुले मंच से BRICS को खत्म करने की धमकी दी—प्रधानमंत्री सिर्फ मुस्कुराते रहे। ट्रंप ने कहा कि भारत पर टैरिफ लगाया जाएगा—प्रधानमंत्री फिर मुस्कुराते रहे। ट्रंप ने कबाड़ माने जाने वाले F-35 विमानों को भारत पर थोपने की कोशिश की—प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया वही रही, मुस्कुराहट।
गौरतलब है कि USAID या किसी भी विदेशी फंडिंग एजेंसी से पैसा लेना कोई अपराध नहीं है, लेकिन भाजपा का यह दोहरा रवैया सवालों के घेरे में आ गया है। देश में फंडिंग को लेकर स्पष्ट कानून मौजूद हैं, जिनके तहत भाजपा से जुड़े एनजीओ भी फंड लेते हैं। लेकिन जब यही फंडिंग कांग्रेस या किसी अन्य संगठन से जुड़ी हो, तो उसे देश-विरोधी करार देना अनुचित है।
भाजपा के नेताओं को यह भी याद रखना चाहिए कि जब स्मृति ईरानी USAID की ब्रांड एंबेसडर थीं और सिलेंडर लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं, तो क्या वह आंदोलन भी USAID द्वारा प्रायोजित था? अन्ना हजारे के दिल्ली में किए गए आंदोलन के दौरान फोर्ड फाउंडेशन से आने वाले फंड पर सवाल उठे थे, जिसमें संघ का नाम भी जुड़ा था।
अगर मोदी सरकार USAID फंडिंग को लेकर इतनी ही चिंतित है, तो उसे पहले अपने ही नेताओं के कार्यों पर गौर करना चाहिए।
2024 में पीयूष गोयल ने 'जीरो कार्बन उत्सर्जन' के लिए USAID से फंड लिया। 10 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने USAID के साथ सहयोग बढ़ाने की चर्चा की। 2016 में नोटबंदी से ठीक पहले नरेंद्र मोदी ने USAID के साथ कैशलेस अर्थव्यवस्था पर समझौता किया—क्या इसका मतलब यह है कि नोटबंदी अमेरिका के इशारे पर हुई?
कोविड महामारी के दौरान मोदी सरकार ने USAID से 100 मिलियन डॉलर की सहायता ली। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर किसी अन्य दल के USAID से संबंध देशद्रोह माने जाते हैं, तो भाजपा की सरकार द्वारा लिया गया फंड किस श्रेणी में आएगा?
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