तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने बुधवार, 19 फरवरी को एक विवादित बयान देकर नई बहस को जन्म दे दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी को तमिलनाडु पर थोपने से तमिल भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, ठीक उसी तरह जैसे हिंदी के प्रभाव से उत्तर भारतीय भाषाएं—राजस्थानी, हरियाणवी, भोजपुरी और बिहारी—दबाव में आ गईं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उदयनिधि स्टालिन ने कहा, "हिंदी ने उत्तर भारत की कई स्थानीय भाषाओं को नष्ट कर दिया है और अब वे प्राथमिक भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी हैं। अगर तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य किया गया, तो यही हश्र तमिल भाषा का भी होगा।"
उन्होंने इसरो और अन्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में काम करने वाले तमिलनाडु के पेशेवरों का उदाहरण देते हुए कहा कि उनमें से लगभग 99% सरकारी स्कूलों से आए हैं और उन्होंने हिंदी की शिक्षा नहीं ली है।
डीएमके का केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन
यह बयान ऐसे समय में आया है जब डीएमके ने नई शिक्षा नीति (NEP), त्रिभाषा नीति और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के रुख के विरोध में चेन्नई में एक बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया। इस प्रदर्शन में डीएमके के कई वरिष्ठ नेता, विधायक और सांसद, जिनमें मंत्री अंबिल महेश पोयामोझी, शेखर बाबू, मा. सुब्रमण्यम, तमिलाची थंगापांडियन और कनिमोझी सोमू शामिल थे, केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए।
विरोध प्रदर्शन के दौरान उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने स्पष्ट किया कि वह यहां उपमुख्यमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि "डीएमके युवा विंग के एक कार्यकर्ता के रूप में" शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा, "हम अपने राज्य की भाषा और शिक्षा को बचाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।"
उदयनिधि स्टालिन ने केंद्र सरकार पर वित्तीय भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्रीय बजट 2025 में अन्य राज्यों के साथ साझा किए जाने वाला फंड मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और गुजरात को दिया गया, जबकि तमिलनाडु को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि तमिलनाडु के लोग त्रिभाषा नीति को कभी स्वीकार नहीं करेंगे और यह उनके "आत्मसम्मान का मामला" है।
उदयनिधि स्टालिन ने इस मुद्दे पर एआईएडीएमके की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा, "अगर एआईएडीएमके वास्तव में अन्ना (पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई) और द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा का पालन करती है, तो उसे नई शिक्षा नीति का कड़ा विरोध करना चाहिए।" उन्होंने एआईएडीएमके से इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाने की मांग की और कहा कि तमिलनाडु कभी भी भाषा के नाम पर "गुलामी" स्वीकार नहीं करेगा।
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