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'दिल्ली से महाराष्ट्र तक, विपक्ष की फूट ने मोदी-शाह की ताकत बढ़ाई' - शिवसेना (यूबीटी)

 10 Nov 2025

शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र 'सामना' ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर कड़ा संपादकीय लिखा है, जिसमें आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच की गहरी दरार को बीजेपी की प्रचंड जीत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है। संपादकीय में विपक्षी गठबंधन की सार्थकता पर सवाल उठाते हुए तंज कसा गया कि जब घटक दल आपस में ही लड़ते रहते हैं, तो फिर महागठबंधन बनाने की जरूरत ही क्या है?


दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 70 में से 48 सीटें जीतकर ऐतिहासिक बढ़त हासिल की, जबकि आम आदमी पार्टी को सिर्फ 22 सीटें ही मिल सकीं। कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय रही—पार्टी लगातार तीसरी बार दिल्ली विधानसभा में खाता खोलने में विफल रही। 'सामना' ने लिखा, "AAP और कांग्रेस ने बीजेपी को हराने के बजाय एक-दूसरे को खत्म करने की लड़ाई लड़ी, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के लिए रास्ता साफ हो गया। अगर यही सिलसिला जारी रहा, तो गठबंधन की कोई जरूरत नहीं—बस जी-भरकर आपस में लड़ो!"

AAP की हार के लिए कांग्रेस को ठहराया ज़िम्मेदार


संपादकीय के मुताबिक, दिल्ली की कम से कम 13 सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस के कारण AAP को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने वोट काटकर बीजेपी के लिए जीत की राह आसान कर दी। वहीं, कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर आप अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल रही। ओवैसी की पार्टी AIMIM की वजह से भी AAP को एक सीट गंवानी पड़ी, जबकि कांग्रेस के वोट मुस्तफाबाद और ओखला में बंट गए।

दिल्ली से महाराष्ट्र तक विपक्ष की गुटबाज़ी का फायदा BJP को


शिवसेना (यूबीटी) ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली की तरह ही वहां भी विपक्षी दलों की आपसी कलह ने बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाया। 'सामना' ने चेताया कि यदि विपक्षी दल दिल्ली चुनाव से सबक नहीं लेंगे, तो इससे सिर्फ मोदी-शाह की 'तानाशाही' को मजबूती मिलेगी। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी विपक्ष की गुटबाजी पर निशाना साधते हुए कहा था, "और लड़ो आपस में!" संपादकीय में हरियाणा का भी जिक्र किया गया, जहां विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष में बिखराव देखने को मिला, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिला। यहां तक कि कांग्रेस के अंदर ही ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो राहुल गांधी के नेतृत्व को कमजोर कर रहे हैं।

संपादकीय में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को भी कठघरे में खड़ा किया गया। 'सामना' ने लिखा कि अन्ना हजारे, जिन्होंने कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाया था, मोदी सरकार के कथित भ्रष्टाचार पर पूरी तरह चुप हैं। संपादकीय में पूछा गया, "अन्ना हजारे ने राफेल सौदे, अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट जैसे मुद्दों पर चुप्पी क्यों साध रखी है?"

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