अमेरिका से भारत भेजे गए प्रवासी भारतीयों को हथकड़ी और बेड़ी में बांधने का मामला अब गंभीर रूप से चर्चा में आ चुका है, और इस पर विभिन्न राजनीतिक और राजनयिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को राज्यसभा में यह स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिकों को अमेरिका द्वारा लागू की गई 2012 की नीति के तहत हथकड़ी और बेड़ी में बांधा गया था, और इस नियम में महिलाओं और बच्चों को विशेष छूट दी गई थी। जयशंकर के बयान के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के दौरान की हथकड़ी-बेड़ी की घटनाओं को याद करते हुए यह स्पष्ट किया कि अमेरिका द्वारा प्रवासियों को हथकड़ी में बांधकर भेजने का फैसला सही था और उस पर किसी को भी आपत्ति नहीं करनी चाहिए।
हालांकि, लवप्रीत कौर की कहानी ने इस बयान को चुनौती दी है। पंजाब के कपूरथला जिले के भुलत्थ की रहने वाली लवप्रीत कौर, जो अपने 10 वर्षीय बेटे के साथ अमेरिका जाने के लिए रवाना हुई थीं, ने अपनी पूरी यात्रा के दौरान अमेरिकी अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में बताया।
2 जनवरी को, लवप्रीत कौर और उनका बेटा 1.05 करोड़ रुपये के भुगतान के बाद यूएस के लिए रवाना हुए थे, ताकि वह अपने पति से मिल सकें, जो पहले से ही अमेरिका में थे। मगर 27 जनवरी को अमेरिकी बॉर्डर गश्ती दल ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें डिपोर्ट करने का निर्णय लिया।
लवप्रीत कौर ने बताया कि इस 25 दिन की यात्रा के दौरान उन्हें दुबई और लैटिन अमेरिका के विभिन्न देशों जैसे अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला और मैक्सिको से होते हुए जाना पड़ा। इस दौरान, अधिकारियों ने उनसे उनके आभूषण, जूते के फीते, और यहां तक कि उनके मोबाइल फोन के सिम कार्ड तक को जब्त कर लिया। उन्हें केवल पासपोर्ट वापस किए गए थे। इस पूरी घटना ने उन दावों को गलत साबित किया, जिनमें कहा गया था कि अमेरिका केवल पुरुषों को हथकड़ी में बांधता है और महिलाओं को छूट दी जाती है। लवप्रीत कौर और उनके बेटे के साथ जो व्यवहार हुआ, उससे यह साफ होता है कि अमेरिका की नीति में कहीं ना कहीं कुछ खामियां थीं।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे को उठाया और एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें अमेरिका से लौटे प्रवासियों की स्थिति को दिखाया गया था।
पवन खेड़ा ने सवाल उठाया कि क्यों भारत के प्रधानमंत्री चीन का बचाव करते हैं और विदेश मंत्री अमेरिका का बचाव करते हैं? क्या इसके पीछे कोई दबाव है? क्या यह कोई मजबूरी है, जिसके कारण भारत अपने नागरिकों के साथ इस प्रकार के व्यवहार पर चुप है?
जयशंकर ने राज्यसभा में यह भी बताया कि भारत ने हमेशा अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट किया है, और उन्होंने 2009 से 2025 तक के आंकड़े भी प्रस्तुत किए थे। हालांकि, उन्होंने यह साफ नहीं किया कि क्या पिछले मामलों में भी प्रवासियों को हथकड़ी और बेड़ी में बांधकर भेजा गया था। जयशंकर के अनुसार, अमेरिका ने 2012 में ही हथकड़ी और बेड़ी लगाने का नियम लागू किया था, लेकिन इसके बाद भी कई प्रवासी बिना हथकड़ी के डिपोर्ट किए गए हैं, और इसमें कोई विवाद नहीं था।
अमेरिका से भारतीयों के निर्वासन के मामले में एक और नया पहलू सामने आया है। अमेरिकी अधिकारियों ने पहली बार 40 घंटे की लंबी उड़ान में मिलिट्री विमान का इस्तेमाल किया और प्रवासियों को हथकड़ी में बांधकर भेजा। यह कदम एक नई घटना थी, क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि अमेरिकी सरकार ने प्रवासियों को इस तरह की विशेष सुरक्षा में भेजा हो। पिछले साल, संयुक्त अरब अमीरात से एक चार्टर्ड फ्लाइट के माध्यम से अमेरिका से अवैध प्रवासियों को भारत भेजा गया था, लेकिन इस दौरान अमेरिकी और फ्रांसीसी अधिकारियों ने प्रवासियों के साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया था, जिससे यह साफ था कि इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण से कोई लापरवाही नहीं बरती गई थी।
अमेरिकी विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि जब प्रवासियों को भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तो भारतीय राजनयिक मिशन को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के साथ इस मामले पर स्पष्ट बातचीत करनी चाहिए थी। इस मामले में कोलंबियाई राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो का उदाहरण भी सामने आया है। राष्ट्रपति पेट्रो ने अमेरिकी सैन्य विमान को अपने देश में लैंड करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, और इसके बाद कोलंबिया ने अपने खुद के विमान को भेजकर अपने नागरिकों को वापस लिया। यह एक मिसाल बन गया है, जो भविष्य में अन्य देशों को भी प्रेरित कर सकता है कि वे अपने नागरिकों के साथ उचित और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए किसी भी बाहरी दबाव को न मानें।
यह मामला भारतीय सरकार और अमेरिका के बीच के राजनयिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है, जिसमें प्रवासियों के अधिकारों और उनके मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
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