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मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: पत्रकारों से निजी जानकारी मांगना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ

 11 Nov 2025

मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि पत्रकारों को निजी डेटा साझा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) के खिलाफ है। जस्टिस G. K. Ilanthiraiyan ने सुनवाई के दौरान यह कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर पत्रकारों पर इस तरह का दबाव बनाया जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से उत्पीड़न के दायरे में आता है।


मामले की पृष्ठभूमि


यह पूरा मामला अन्ना यूनिवर्सिटी से जुड़े एक यौन उत्पीड़न केस से जुड़ा हुआ है, जिसकी जांच SIT कर रही थी। जांच के दौरान SIT ने कई पत्रकारों को समन भेजा और उनसे 50 से अधिक सवाल पूछे। इन सवालों में उनके विदेश दौरों, उनकी आर्थिक स्थिति और अन्य व्यक्तिगत जानकारियों से जुड़े सवाल भी शामिल थे। यह मामला तब गंभीर हो गया जब कोर्ट को पता चला कि पत्रकारों से इस तरह की गोपनीय जानकारी मांगकर उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

पत्रकारों के पक्ष में हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी


मद्रास हाई कोर्ट ने पत्रकारों के समर्थन में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि पत्रकारों से निजी डेटा मांगना और उन्हें दबाव में लाने की कोशिश करना प्रेस की आज़ादी के खिलाफ है। जस्टिस G. K. Ilanthiraiyan ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता और निजता एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पत्रकारों से पूछे गए सवाल व्यक्तिगत और असंगत थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह निजता के अधिकार का हनन था।

कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान SIT को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि जांच एजेंसी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य कर रही है। अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि पत्रकारों से पूछताछ शुरू करने से पहले उन्हें कोई समन तक नहीं भेजा गया। इसके अलावा, FIR लीक होने के बाद पत्रकारों से सीधे सवाल-जवाब किए गए, लेकिन यह जांच करने की कोई कोशिश नहीं की गई कि FIR आखिर लीक कैसे हुई और किसने इसे सार्वजनिक किया।

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