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30 लाख की कीमत पर अमेरिका पहुंचे जसपाल, हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियों को याद कर छलका दर्द

 13 Nov 2025

बुधवार को अमेरिकी विमान से भारत वापस भेजे गए 104 निर्वासितों में से एक, जसपाल सिंह, ने अपनी यात्रा के दौरान हुई कठिनाईयों और दुश्वारियों के बारे में विस्तार से बताया। जसपाल, जो गुरदासपुर जिले के हरदोरवाल गांव के रहने वाले हैं, ने कहा कि उन्हें यात्रा के दौरान पूरी तरह से बंदी बना लिया गया था। उन्होंने दावा किया कि पूरी यात्रा में उनके हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां डाली गईं और यह तब तक जारी रही, जब तक वे अमृतसर हवाई अड्डे पर नहीं उतरे। जसपाल ने बताया कि 24 जनवरी को अमेरिकी सीमा पार करते समय उन्हें अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने गिरफ्तार किया था। इन 104 निर्वासितों में से 33-33 हरियाणा और गुजरात से, 30 पंजाब से, 3-3 महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से, और 2 चंडीगढ़ से थे। इस समूह में 19 महिलाएं और 13 नाबालिग बच्चे भी शामिल थे, जिनमें एक चार वर्षीय लड़का और दो लड़कियां (5 और 7 वर्ष की) थीं।


 पंजाब के निर्वासितों को अमृतसर हवाई अड्डे से पुलिस वाहनों द्वारा उनके गृह क्षेत्रों तक भेजा गया था। जसपाल सिंह ने इस यात्रा के दौरान हुए धोखाधड़ी का उल्लेख किया और बताया कि एक ट्रैवल एजेंट ने उन्हें वादा किया था कि उन्हें कानूनी तरीके से अमेरिका भेजा जाएगा। हालांकि, एजेंट ने उन्हें धोखा दिया और अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए मजबूर किया। जसपाल ने बताया कि सौदा 30 लाख रुपये में हुआ था और वह 2022 के जुलाई महीने में हवाई जहाज से ब्राजील पहुंचे थे। एजेंट ने उनसे वादा किया था कि अमेरिका का रास्ता भी हवाई जहाज से होगा, लेकिन बाद में उन्हें अवैध तरीके से सीमा पार करने के लिए मजबूर किया गया। ब्राजील में छह महीने के बाद, जसपाल ने सीमा पार कर अमेरिका में प्रवेश किया, लेकिन अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 11 दिनों तक हिरासत में रखने के बाद उन्हें भारत भेज दिया। 

जसपाल ने यह भी बताया कि उन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि वे भारत वापस भेजे जा रहे हैं और जब उन्हें बताया गया कि वे भारत जा रहे हैं, तो वह बेहद हैरान और परेशान थे। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान उन्हें पूरी तरह से कैदी की तरह महसूस हुआ क्योंकि उनके हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां थीं, जो अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही हटाई गईं। होशियारपुर के हरविंदर सिंह ने भी अपनी यात्रा का अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि वह कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ, और फिर मैक्सिको से होते हुए अमेरिका पहुंचे थे। हरविंदर ने बताया कि उन्होंने यात्रा के दौरान कई जोखिमों का सामना किया, जिनमें पहाड़ियां पार करना, समुद्र में नाव डूबने की स्थिति में फंसना, और कई खतरनाक घटनाएं शामिल थीं। उन्होंने बताया कि एक नाव जिसमें वह यात्रा कर रहे थे, समुद्र में डूबने वाली थी, लेकिन किसी तरह वे बच गए। उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति पनामा के जंगल में मरते हुए और एक अन्य व्यक्ति समुद्र में डूबते हुए अपना जीवन खो बैठा। यात्रा के दौरान हरविंदर को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि कभी उन्हें खाना नहीं मिलता था, और कभी बिस्किट या चावल ही खाने को मिलते थे। इसके अलावा, ट्रैवल एजेंट ने वादा किया था कि उन्हें यूरोप के रास्ते अमेरिका ले जाया जाएगा, लेकिन उन्होंने 42 लाख रुपये खर्च किए, और यात्रा के दौरान उनका सामान भी चोरी हो गया। 

 पंजाब से निर्वासित एक अन्य व्यक्ति ने अपने अनुभव साझा किया और बताया कि उन्हें पहले इटली और फिर लैटिन अमेरिका ले जाया गया। उन्होंने नाव से 15 घंटे लंबी यात्रा की और 40-45 किलोमीटर पैदल भी चलने पड़े। उन्होंने कहा, "हमने 17-18 पहाड़ियां पार कीं। अगर कोई फिसल जाता, तो उसकी जान बचने की कोई संभावना नहीं थी। हम जो कुछ भी देख चुके हैं, वह किसी के कल्पना से बाहर है। अगर कोई घायल हो जाता तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। कई लाशें भी हमें देखने को मिलीं।" इन कठिन अनुभवों के बावजूद, इन निर्वासितों की यात्रा खत्म नहीं हुई, लेकिन वे बहुत सी कठिनाइयों और दुखद घटनाओं के बाद अपने घर लौटे हैं। उनका कहना है कि इस पूरी यात्रा ने उन्हें यह सिखाया कि अवैध तरीके से किसी भी देश में प्रवेश करना कितना खतरनाक और दर्दनाक हो सकता है।

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