सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) की धारा 35 और 36 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से मना कर दिया है और इसे उच्च न्यायालय में सुनने का निर्देश दिया है। याचिकाओं में यह तर्क दिया गया था कि ये धाराएं केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसे आतंकवादियों की सूची से बाहर करने का अधिकार देती हैं, जो संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
कोर्ट की बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन शामिल थे, ने यह पाया कि दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है और अन्य उच्च न्यायालयों में भी UAPA से संबंधित याचिकाएं लंबित हैं।
कोर्ट ने सवाल किया कि यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट में क्यों लाया गया। न्यायमूर्ति खन्ना और अन्य न्यायाधीशों का यह मानना था कि इस मामले पर पहले उच्च न्यायालय का निर्णय आना चाहिए, ताकि मामले की संजीवता के हिसाब से सही निर्णय लिया जा सके।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स और सजल अवस्थी ने इस मामले में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि 2019 में UAPA कानून में किए गए संशोधनों ने केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया है कि वह किसी को भी मनमाने तरीके से आतंकवादी घोषित कर सकती है, जबकि व्यक्ति को अपनी निर्दोषता साबित करने का बोझ होगा। यह कदम संविधान में दिए गए समानता, स्वतंत्रता और सम्मान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
सीजेआई संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं को यह समझाया कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करता है, तो भविष्य में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि मुद्दों का उचित तरीके से समाधान न हो पाना और मामले को बड़ी बेंच में भेजने की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए यह सही होगा कि पहले उच्च न्यायालय इस पर निर्णय ले, और इसके बाद यदि आवश्यकता पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार कर सकता है।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट सी यू सिंह ने अदालत से यह अपील की थी कि पांच वर्षों से यह मामला लंबित है और सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई मामलों में निर्णय दे चुका है, तो इस मामले की सुनवाई क्यों नहीं हो सकती। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि वह रिटायर्ड नौकरशाह हैं, उन्हें अन्य उच्च न्यायालयों में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त करने में मुश्किल हो सकती है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की मंजूरी दे दी।
अब यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में सुना जाएगा, और यदि वहां से कोई फैसला आता है, तो उसके बाद सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय ले सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण संकेत है कि किसी भी बड़े मुद्दे पर पहला अधिकार उच्च न्यायालयों का होना चाहिए, जो मामलों की विस्तार से सुनवाई कर सकते हैं।
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