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प्यू रिसर्च रिपोर्ट: भारत में 64% लोग मानते हैं कि धर्म राष्ट्रीय पहचान के लिए जरूरी है

 26 Nov 2025

क्या धर्म एक देश की राष्ट्रीय पहचान से जुड़ा हो सकता है? क्या किसी धर्म-निरपेक्ष देश की पहचान एक ख़ास धर्म के आधार पर तय की जा सकती है? इस सवाल का जवाब प्यू रिसर्च सेंटर की नई रिपोर्ट में मिलता है, जो इस सवाल को लेकर गहरी जाँच करती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 64 प्रतिशत लोग मानते हैं कि धर्म राष्ट्रीय पहचान का अहम हिस्सा है। खासतौर पर हिंदू धर्म के संदर्भ में, 73 प्रतिशत हिंदू यह मानते हैं कि हिंदू होना भारतीय होने के लिए जरूरी है। इसके विपरीत, केवल 12 प्रतिशत मुसलमान इस बात से सहमत हैं कि धर्म राष्ट्रीय पहचान में कोई भूमिका निभाता है। हालांकि, पूरे देश में केवल 24 प्रतिशत लोग खुद को 'धार्मिक राष्ट्रवादी' मानते हैं।


रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई मध्य आय वाले देशों में, जैसे कि इंडोनेशिया, फिलीपींस और ट्यूनीशिया, लगभग तीन-चौथाई या उससे अधिक लोग मानते हैं कि देश के ऐतिहासिक रूप से प्रमुख धर्म से जुड़ना राष्ट्रीय पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वहीं, उच्च आय वाले देशों में धर्म को राष्ट्रीय पहचान से जोड़ने का नजरिया कम है। इसराइल, हालांकि, एक अपवाद है, जहां कम से कम एक तिहाई लोग यह मानते हैं कि यहूदी धर्म का पालन राष्ट्रीय पहचान का अहम हिस्सा है।

मध्यम आय वाले देशों में लोग उच्च आय वाले देशों की तुलना में ज्यादा धर्म को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर ने जनवरी से मई 2024 तक 36 देशों में करीब 55,000 लोगों से सर्वे किया, जिसमें बौद्ध धर्म, इस्लाम, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म जैसे प्रमुख धर्मों को शामिल किया गया। सर्वे में सवाल किया गया कि राष्ट्रीय पहचान में धर्म का क्या महत्व है, और क्या लोग धर्म के आधार पर खुद को 'धार्मिक राष्ट्रवादी' मानते हैं। धार्मिक राष्ट्रवादी का मतलब था वे लोग जो देश के प्रमुख धर्म से गहरे जुड़े होते हैं और जो राष्ट्रीय कानूनों में उस धर्म की शिक्षाओं का प्रभाव देखना चाहते हैं।

भारत जैसे देशों में, जहां बहुसंख्यक धर्म का प्रभाव है, लोग मानते हैं कि धर्म समाज के लिए फायदेमंद है और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है। बांग्लादेश जैसे देशों में 94 प्रतिशत लोग मानते हैं कि धर्म समाज की मदद करता है, जबकि स्वीडन में यह संख्या सिर्फ 42 प्रतिशत है। भारत में 24 प्रतिशत लोग खुद को 'धार्मिक राष्ट्रवादी' मानते हैं, और 57 प्रतिशत हिंदू धर्म के आधार पर भारतीय कानून बनाने के पक्षधर हैं। वहीं, भारतीय मुसलमानों में यह संख्या केवल 26 प्रतिशत है।

वहीं, उच्च आय वाले देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी और यूके में अधिकांश लोग धर्म के प्रभाव को नकारते हैं। इन देशों में लोग आमतौर पर मानते हैं कि धर्म समाज के लिए उतना मददगार नहीं है। रिपोर्ट से यह भी पता चला कि कम शिक्षा और आय वाले लोग ज्यादा 'धार्मिक राष्ट्रवादी' होते हैं। इसके अलावा, दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग वामपंथी या मध्यमार्गी लोगों की तुलना में अधिक धार्मिक राष्ट्रवाद की ओर झुकाव रखते हैं।

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