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एक देश, एक चुनाव को लेकर सरकार की कवायदें तेज़, क्षेत्रीय दलों से बातचीत शुरू

 26 Nov 2025

देश में 'एक देश, एक चुनाव' की प्रक्रिया को लागू करने की दिशा में सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस संबंध में गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने चुनाव आयोग के अधिकारियों और प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया है। इन बैठकें में संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा की जाएगी, जिससे इस महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें। जेपीसी केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि समिति देशभर में राज्यों का दौरा कर क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी उनके विचार और आपत्तियां सुनेगी। कई क्षेत्रीय दलों को 'एक देश, एक चुनाव' के बारे में आपत्ति हो सकती है, जिनका समाधान निकालने के लिए प्रयास किए जाएंगे। 


इसके साथ ही, जेपीसी में पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जजों, संविधान विशेषज्ञों और विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का विचार है, ताकि इस विषय पर व्यापक और संतुलित बहस हो सके। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस विषय पर सभी पक्षों के विचारों को सुना जाए और उनके हितों का भी ध्यान रखा जाए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए 'एक देश, एक चुनाव' के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार इस महत्वपूर्ण सुधार को लागू करने के लिए पूरी तत्परता के साथ काम कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले एक दशक में सरकार ने देश की विकास यात्रा को नई दिशा दी है और 'एक देश, एक चुनाव' इस दिशा में एक और अहम कदम होगा। राष्ट्रपति ने इसे एक क्रांतिकारी कदम बताया, जो ना सिर्फ चुनावी व्यवस्था को प्रभावी और कम खर्चीला बनाएगा, बल्कि इससे शासन में भी निरंतरता बनी रहेगी। 

 राष्ट्रपति मुर्मू के अनुसार, एक साथ चुनावों के आयोजन से प्रशासन और विकास कार्यों में आने वाली रुकावटें कम हो जाएंगी, क्योंकि चुनावों के दौरान बार-बार होने वाली चुनावी प्रक्रिया के कारण अक्सर सरकार के कामकाजी माहौल में व्यवधान उत्पन्न होते हैं। इससे सरकार के संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सकेगा और शासन की गति में भी तेजी आएगी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस व्यवस्था का समर्थन करते हुए इसे संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप बताया था। उनका कहना था कि 1952 से लेकर 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, जो यह साबित करता है कि यह व्यवस्था असंवैधानिक नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि एक देश, एक चुनाव से चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाया जा सकता है, जिससे लोकतंत्र की मज़बूती में मदद मिलेगी। 

 इस प्रकार, 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव पर अब और भी गंभीर चर्चा हो रही है, और सरकार ने इसे लागू करने के लिए अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए हैं। हालांकि, यह योजना कई राजनैतिक दलों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन इस मुद्दे पर विचार-विमर्श और बातचीत से एक संतुलित समाधान निकाला जा सकता है, जो सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखे।

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