वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने समिति की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंप दी है। इस 665 पन्नों की रिपोर्ट को बुधवार को समिति ने 11 के मुकाबले 15 मतों से स्वीकार कर लिया। रिपोर्ट में भाजपा के सदस्यों के सुझावों को शामिल किया गया है, जबकि विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए वक्फ बोर्डों को बर्बाद करने की साजिश बताया।
भाजपा सांसदों का कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और आधुनिकता लाने का प्रयास है। इस विधेयक को पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था।
विपक्ष का कड़ा विरोध
जेपीसी की रिपोर्ट को मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी सदस्यों ने असहमति के नोट दर्ज कराए। समिति की बैठक में भाजपा के प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया, जबकि विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया गया।
विपक्ष ने समिति में विधेयक के 44 प्रावधानों में संशोधन की मांग रखी थी, जिसे खारिज कर दिया गया। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि प्रस्तावित कानून मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास करता है और इसका 'दमनकारी' स्वरूप बरकरार रखा गया है।
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक पर कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कहा कि "उपयोगकर्ता को वक्फ से हटाने वाला प्रावधान अनावश्यक रूप से जोड़ा गया है।" उनका कहना है कि यह प्रावधान केवल संपत्ति विवाद वाले मामलों पर लागू होगा, जबकि कई स्थितियों में इसकी कोई जरूरत ही नहीं थी।
8 अगस्त, 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा लोकसभा में यह विधेयक पेश किया गया था। इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों को दूर करना है।
हालांकि, यह विधेयक विपक्ष और सरकार के बीच बड़े राजनीतिक टकराव का कारण बनता दिख रहा है। अब यह देखना होगा कि इसे संसद में कितनी आसानी से पारित किया जाता है या नहीं।
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