संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) बिल 2024 की ड्राफ्ट रिपोर्ट और संशोधित बिल को बहुमत से मंजूरी दे दी। समिति के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने मीडिया को बताया कि विपक्षी सांसदों को असहमति पत्र (डिसेंट नोट) जमा करने के लिए शाम 4 बजे तक का वक्त दिया गया है। इस फैसले से विपक्षी दल खासा नाराज नजर आए, क्योंकि समिति ने एनडीए सांसदों के सभी संशोधनों को मंजूरी दी, जबकि कांग्रेस, एआईएमआईएम, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव गुट) और वाम दलों के सुझावों को पूरी तरह खारिज कर दिया।
विपक्ष का दावा है कि मंगलवार को सांसदों को 600 से ज्यादा पन्नों की ड्राफ्ट रिपोर्ट दी गई थी, जिसे पढ़कर अपनी आपत्ति दर्ज कराना लगभग नामुमकिन था। विपक्ष ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से पक्षपाती और असंवेदनशील करार दिया और आरोप लगाया कि इसे पारित करने में जल्दबाजी की गई है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है।
विपक्षी सांसदों ने इस फैसले पर विरोध जताते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और संसद की कार्यप्रणाली के खिलाफ बताया। शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद अरविंद सावंत ने कहा, "मैंने असहमति पत्र जमा कर दिया है, क्योंकि इस बिल को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। इसे न्याय के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए लाया जा रहा है। यहां तक कि संविधान की भी अनदेखी की जा रही है। जब वे वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की बात करते हैं, तो यह भविष्य में मंदिरों के प्रबंधन पर भी असर डाल सकता है।"
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिल के प्रावधानों की आलोचना करते हुए कहा, "जो संशोधन किए गए हैं, वे वक्फ बोर्ड के हित में नहीं हैं, बल्कि उसे खत्म कर देंगे। 650 पन्नों की रिपोर्ट को रातोंरात पढ़कर असहमति पत्र तैयार करना व्यावहारिक रूप से असंभव था।" ओवैसी ने इस पूरी प्रक्रिया को गैर-लोकतांत्रिक और पक्षपाती करार दिया और इसे सत्ता पक्ष द्वारा विपक्षी दलों की आवाज़ दबाने की कोशिश बताया।
विपक्षी सांसदों ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए आरोप लगाया कि जेपीसी की प्रक्रिया पूरी तरह से एकतरफा रही। टीएमसी ने अपने असहमति पत्र में कहा, "जेपीसी की पूरी कार्यवाही केवल दिखावा थी।
समिति के अध्यक्ष ने जिस तरीके से इसे आगे बढ़ाया, वह कानून की प्रक्रिया के खिलाफ है। इससे सांसदों को विरोध करने का अधिकार छीन लिया गया और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हुआ। 27 जनवरी 2025 लोकतंत्र के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज होगा।" टीएमसी का कहना है कि संशोधित बिल की कई धाराएं वक्फ बोर्ड की जमीन और इमारतों से संबंधित हैं। संसद को राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में दखल देने का अधिकार नहीं है। भूमि और भवन से जुड़े मुद्दे संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची (एंट्री 18 और 35) के तहत आते हैं, इसलिए यह बिल संविधान और संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है।
इसके अलावा, विपक्ष ने यह भी कहा कि इस बिल को पारित करने से पहले संसद के सभी सदस्य और नागरिक समाज इसके प्रभाव का समग्र मूल्यांकन करने का मौका नहीं पा रहे हैं।
विपक्षी दलों का यह मानना है कि इस तरह के महत्वपूर्ण संशोधन को बिना व्यापक चर्चा के पारित करना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए हानिकारक हो सकता है।
संशोधित बिल की रिपोर्ट गुरुवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपी जाएगी। इस रिपोर्ट के बारे में जानकर अगले कदम तय किए जाएंगे। बता दें कि अगस्त 2024 में यह बिल केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा संसद में पेश किया गया था और जेपीसी को इसके अध्ययन के लिए भेजा गया था।
इसका उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करके वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाना था।
इस प्रक्रिया के चलते विपक्ष और सरकार के बीच टकराव और बढ़ने की संभावना है, और संसद के बजट सत्र में इस मुद्दे पर गरम बहस होने की संभावना है। विपक्ष का कहना है कि इस प्रकार की प्रक्रिया संसद के लोकतांत्रिक और संवैधानिक दायित्वों के खिलाफ है, और उन्हें उम्मीद है कि इसके खिलाफ जनमत तैयार होगा।
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