नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और हरियाणा तथा राजस्थान के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से अवैध खनन के मामले पर जवाब मांगा है। यह मामला अरावली पहाड़ियों में हो रहे अवैध खनन और विस्फोटों से संबंधित है, जिनसे इन पहाड़ियों को गंभीर नुकसान हो रहा है। 22 जनवरी, 2025 को एनजीटी द्वारा जारी आदेश में जयपुर और चंडीगढ़ स्थित पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयों से भी जवाब तलब किया गया है, साथ ही भरतपुर और नूंह के जिलाधिकारियों को इस मुद्दे पर जानकारी देने का निर्देश दिया गया है।
यह मामला हरियाणा-राजस्थान सीमा पर स्थित अरावली पर्वतमाला में हो रहे अवैध खनन से जुड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस खनन के कारण एक पहाड़ी का हिस्सा कुछ ही घंटों में ढह गया। हालांकि, इस घटना के बारे में मतभेद हैं। कुछ का कहना है कि यह नूह के रावा गांव में हुआ, जबकि हरियाणा के खनन अधिकारी इसे राजस्थान में घटित मानते हैं। आरोप है कि खनन माफिया राजस्थान में वैध खनन के बहाने विस्फोट करके पहाड़ियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जबकि हरियाणा में यह खनन अवैध तरीके से हो रहा है। 2023 में राजस्थान में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 1975 से 2019 तक अरावली पर्वतमाला का लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो चुका है। अगर अवैध खनन और शहरीकरण की यही गति बनी रही, तो 2059 तक यह आंकड़ा 22 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि नूंह के नहरिका, चित्तौड़ा और रावा गांवों से आठ करोड़ मीट्रिक टन से अधिक खनिज सामग्री का दोहन किया जा चुका है।
अरावली पर्वत श्रृंखला के इस दोहन से क्षेत्र को गंभीर पर्यावरणीय नुकसान हो रहा है। यह चौथी घटना है जब खनन माफिया ने अरावली पहाड़ियों में विस्फोट कर उन्हें क्षति पहुंचाई है। रिपोर्ट के अनुसार, जंगलों के बीच डंपरों के लिए सड़कें बनाई जा रही हैं, और सप्ताहांत में पहाड़ियों को विस्फोट से उड़ा दिया जाता है। इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। एक अन्य मामले में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव राजावास में स्थानीय लोग पत्थर खनन के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों ने राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन की योजना बनाई है, क्योंकि सरकार अरावली पहाड़ियों में खनन के लिए तीन स्टोन क्रशर स्थापित करने की योजना बना रही है, जो पर्यावरण और स्थानीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
न्यायिक पहलुओं की बात करें, तो 24 मई 2024 को एनजीटी की सेंट्रल बेंच ने राजस्थान के सीकर जिले में हो रहे अवैध खनन को गंभीर मानते हुए जांच के निर्देश दिए थे। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में केंद्रीय पर्यावरण समिति से अरावली खनन मामले में जांच करने के निर्देश दिए थे, यह बताते हुए कि यदि राज्य सरकार को लगता है कि इन खनन गतिविधियों से पर्यावरण पर खतरा हो सकता है, तो उसे इन पर रोक लगाने का अधिकार है। अरावली क्षेत्र में खनन पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है, फिर भी प्रभावशाली लोग पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करके खनन कर रहे हैं। अब देखना यह है कि एनजीटी और संबंधित सरकारी एजेंसियां इस गंभीर समस्या पर क्या ठोस कदम उठाती हैं।
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