इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रकार के रिश्तों को समाज में स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन इसके बावजूद युवाओं के बीच इनका आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है। न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने इस विषय पर चिंता जताते हुए कहा कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए एक ठोस और व्यवस्थित ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां तेजी से बदलाव हो रहे हैं।
युवा पीढ़ी के व्यवहार और सोच में बड़ा परिवर्तन देखा जा रहा है। लिव-इन रिलेशनशिप को अब भी सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं है, लेकिन फिर भी यह एक ट्रेंड बनता जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि इस तरह के रिश्तों में लोग जिम्मेदारियों से बच सकते हैं, जो इन्हें अधिक आकर्षक बनाता है। यह समय है कि समाज इस मुद्दे पर विचार करे और नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए समाधान निकाले।
यह टिप्पणी वाराणसी के एक मामले की सुनवाई के दौरान आई। इस मामले में आकाश केसरी नाम के व्यक्ति पर आईपीसी और एससी/एसटी एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे।
महिला ने आरोप लगाया था कि आकाश ने शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया। इसके अलावा, महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे गर्भपात के लिए मजबूर किया, जातिसूचक गालियां दीं और उसके साथ मारपीट भी की।
इससे पहले वाराणसी के एससी/एसटी कोर्ट ने 6 अगस्त 2024 को आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद आकाश केसरी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी दायर की।
आरोपी के वकील ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि महिला और आरोपी के बीच सभी संबंध आपसी सहमति पर आधारित थे। उन्होंने दावा किया कि दोनों लगभग छह साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहे और महिला ने अपनी सहमति से हर निर्णय लिया। गर्भपात का आरोप भी पूरी तरह से झूठा और निराधार बताया गया।
हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए और इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यह रिश्ता आपसी सहमति पर आधारित था, आरोपी को जमानत दे दी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज में बढ़ते लिव-इन रिलेशनशिप के चलते नैतिक मूल्यों पर असर पड़ रहा है और इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि समाज को बदलते समय के साथ नैतिक मूल्यों को संरक्षित रखने के लिए एक ठोस और व्यवस्थित ढांचा तैयार करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप ने हमारे समाज के पारंपरिक ढांचे को चुनौती दी है। यह ऐसा समय है, जब हमें इन बदलावों को ध्यान में रखते हुए नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को बचाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
यह मामला न केवल एक कानूनी विवाद का मुद्दा है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों पर भी सवाल खड़ा करता है। लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक समय की जीवनशैली में एक नई वास्तविकता के रूप में उभर रहे हैं। हालांकि, ऐसे रिश्तों में पारंपरिक जिम्मेदारियों का अभाव और सुरक्षा का मुद्दा चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत एक पारंपरिक समाज है, जहां रिश्तों को परिवार और समाज की स्वीकृति से जोड़कर देखा जाता है। लिव-इन रिलेशनशिप को अभी भी कई लोग अस्वीकार्य मानते हैं। इन रिश्तों में जिम्मेदारी और स्थायित्व की कमी को लेकर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं।
कोर्ट का यह बयान न केवल एक कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, बल्कि यह समाज को एक संदेश भी देता है कि आधुनिकता के साथ-साथ नैतिकता का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी एक बड़े सामाजिक मुद्दे की ओर इशारा करती है। समाज में नैतिक मूल्यों को बनाए रखना न केवल जरूरी है, बल्कि इसे कानूनी और सामाजिक ढांचे के जरिए लागू किया जाना चाहिए। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का समाज और कानून पर क्या प्रभाव पड़ता है और आने वाले समय में इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए जाते हैं।
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