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दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी: मुस्लिम से विवाह करने मात्र से नहीं होता धर्म परिवर्तन

 19 Dec 2025

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण पारिवारिक विवाद में अहम टिप्पणी करते हुए यह साफ किया कि किसी महिला का मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करने मात्र से उसका अपने आप धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता है। जस्टिस जसमीत सिंह ने यह टिप्पणी एक संपत्ति बंटवारे के मामले में की, जिसमें एक महिला ने अपनी सौतेली मां के बेटों के खिलाफ संपत्ति के अधिकार को लेकर मुकदमा दायर किया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पुष्पलता को उसके पिता की संपत्ति का 1/5 हिस्सा देने का आदेश दिया। यह मामला साल 2007 का है, जब पुष्पलता ने अपनी सौतेली मां के दो बेटों के खिलाफ संपत्ति के बंटवारे को लेकर मुकदमा दायर किया था। पुष्पलता, अपनी पिता की पहली पत्नी की बड़ी बेटी है, और उसके पिता ने दूसरी शादी की थी।


 इस शादी से उत्पन्न हुए दोनों बेटे पिता की संयुक्त संपत्ति को बेचने का प्रयास कर रहे थे, जिस पर पुष्पलता ने आपत्ति जताई। इस पर, पुष्पलता ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत अपनी हिस्सेदारी की मांग की थी। हालांकि, इस मुकदमे के दौरान 2008 में पुष्पलता के पिता का निधन हो गया था। मुकदमा दायर करते वक्त, पुष्पलता का कहना था कि उसे और उसकी बहनों को उनके पिता की संपत्ति में से 1/5 हिस्सा मिलना चाहिए, क्योंकि उसके सौतेले भाई बिना उनकी सहमति के संपत्तियों को बेचने और निपटाने की कोशिश कर रहे थे। इस मामले में, पुष्पलता के पिता ने यह तर्क दिया था कि उनकी बड़ी बेटी अब हिंदू नहीं रही, क्योंकि उसने यूनाइटेड किंगडम में एक पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम से शादी की थी। इसका मतलब यह था कि पुष्पलता अब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं प्राप्त कर सकती थी।

 हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि प्रतिवादियों (पुष्पलता के सौतेले भाइयों) द्वारा केवल यह कहना कि पुष्पलता ने धर्म परिवर्तन कर लिया है, कोई ठोस प्रमाण नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला ने हलफनामे के माध्यम से स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करने के बाद भी अपने हिंदू धर्म का पालन किया है। इस स्थिति में, कोर्ट ने कहा कि किसी महिला का मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने मात्र से स्वचालित रूप से धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में प्रतिवादियों द्वारा कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह साबित हो सके कि पुष्पलता ने इस्लाम धर्म अपना लिया है। 

इसलिए, कोर्ट ने पुष्पलता को उसके पिता की संपत्ति में उसका 1/5 हिस्सा देने का आदेश दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि पुष्पलता और उसकी बहनें एचयूएफ (हिंदू संयुक्त परिवार) की संपत्तियों के अलावा, पीपीएफ खाते में जमा राशि में भी प्रत्येक को 1/4 हिस्सा पाने की हकदार हैं। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि विवाह के आधार पर किसी के धर्म परिवर्तन का दावा बिना ठोस प्रमाणों के स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी माना कि यदि कोई महिला स्वेच्छा से अपनी धार्मिक आस्था को बनाए रखती है और उसका धर्म परिवर्तन करने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, तो उसे उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि कानून धर्म परिवर्तन के मामलों में बहुत ही सतर्कता से निर्णय लेता है और किसी भी दावे को बिना प्रमाण के स्वीकार नहीं करता। कोर्ट ने इस मामले में पुष्पलता को उसके पिता की संपत्ति में से हिस्सा दिलवाकर यह भी सिद्ध किया कि धार्मिक आस्था और परिवार के अधिकारों में कोई भी बदलाव बिना ठोस प्रमाण के नहीं हो सकता।

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