सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू उत्पीड़न के मामले में एक शख्स को सख्त फटकार लगाई है और उसके खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि वह न केवल अपनी पत्नी के साथ अत्याचार कर रहा था, बल्कि अपनी बेटियों की भी कोई परवाह नहीं करता। यह टिप्पणी 2015 में दहेज उत्पीड़न के दोषी ठहराए गए योगेश्वर साव के मामले में दी गई है। योगेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी डेढ़ साल की सजा के खिलाफ अपील दायर की थी। इस मामले में अदालत ने उसकी सजा को लेकर कड़ा रुख अपनाया और उसकी मानसिकता पर भी सवाल उठाए।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा, "आप कैसे इंसान हैं, जो अपनी बेटियों का भी ध्यान नहीं रखते?"
अदालत ने आगे कहा, "आप घर पर पूजा करते हैं, सरस्वती पूजा और लक्ष्मी पूजा करते हैं, लेकिन घर के अंदर क्या हो रहा है, इस पर कोई ध्यान नहीं देते।" बेंच ने यह टिप्पणी करते हुए योगेश्वर से यह भी कहा कि यदि वह अपनी बेटियों के लिए कुछ जमीन ट्रांसफर करने के लिए तैयार हो तो वे राहत देने पर विचार कर सकते हैं।
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर योगेश्वर अपनी बेटियों के नाम पर खेती की कुछ ज़मीन ट्रांसफर करने का वादा करता है, तो वह कुछ राहत देने पर विचार करेंगे। इसका मतलब था कि अदालत उसकी सजा में कुछ ढील देने के लिए तैयार हो सकती थी, बशर्ते वह अपनी बेटियों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और उन्हें प्राथमिकता दे। यह शर्त योगेश्वर के लिए एक तरह का अंतिम अवसर था, जिसमें उसे अपनी गलतियों को सुधारने और अपने परिवार के प्रति जवाबदेही दिखाने का मौका मिला था।
इस मामले की शुरुआत 2015 में हुई थी, जब योगेश्वर साव को दहेज के लिए अपनी पत्नी का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने का दोषी पाया गया था। अदालत ने उसे ढाई साल की सजा सुनाई थी और यह आरोप भी था कि उसने अपनी पत्नी से 50,000 रुपये की दहेज मांग की थी। साथ ही, पत्नी ने यह भी आरोप लगाया था कि योगेश्वर ने जबरन उसका गर्भाशय हटवाया था। हालांकि, झारखंड हाई कोर्ट ने उसे 11 महीने की सजा के बाद राहत दी और सजा को निलंबित कर दिया। इसके बाद, सितंबर 2024 में उच्च न्यायालय ने उसे फिर से दोषी करार दिया, हालांकि गर्भाशय हटवाने के आरोप में कोई ठोस सबूत नहीं मिले थे। इसके बाद, उसे डेढ़ साल की सजा सुनाई गई और एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
योगेश्वर ने बाद में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए, न केवल सजा को लेकर बल्कि योगेश्वर के मानसिकता और उसके परिवार के प्रति उसके दायित्वों पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने उसे इस मामले में अपनी गलती सुधारने का एक अंतिम मौका दिया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि अगर उसने अपनी बेटियों के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया तो उसे कोई राहत नहीं मिलेगी।
इस मामले में अदालत का रुख यह दर्शाता है कि घरेलू उत्पीड़न से जुड़े मामलों में न्याय केवल सजा तक सीमित नहीं होता, बल्कि दोषी व्यक्ति को अपने कृत्यों पर पुनर्विचार करने और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने का भी अवसर मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बच्चों और परिवारों के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा या उत्पीड़न को सहन नहीं किया जाएगा और दोषी व्यक्तियों को अपने कृत्यों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
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