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दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने से हाईकोर्ट ने किया इंकार, BJP की अपील खारिज
19 Dec 2025
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भाजपा विधायकों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर CAG (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, "संविधान के तहत CAG की रिपोर्ट का पेश किया जाना अनिवार्य है। लेकिन अदालतें विधानसभा सत्र बुलाने के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।"
अदालत ने स्पष्ट किया कि विधानसभा सत्र बुलाने का अधिकार पूरी तरह से विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) का है, और इस संबंध में अदालत कोई निर्देश नहीं दे सकती। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि दिल्ली सरकार ने CAG रिपोर्ट पेश करने में अनुचित देरी की है और इस पर नाराजगी व्यक्त की। बेंच ने अपने फैसले में कहा, "हम भाजपा विधायकों की याचिका को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। सदन की बैठक बुलाने के लिए न्यायपालिका का हस्तक्षेप संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।"
भाजपा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि आप सरकार ने स्पीकर को CAG (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट भेजने में जानबूझकर देरी की। इससे पहले, 16 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी और अपना फैसला सुनाने के लिए आज की तारीख तय की थी।
जस्टिस दत्ता ने 16 जनवरी को याचिकाकर्ता, दिल्ली सरकार, विधानसभा अध्यक्ष और उपराज्यपाल (एलजी) की सभी दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता के साथ भाजपा विधायकों मोहन सिंह बिष्ट, ओम प्रकाश शर्मा, अजय कुमार महावर, अभय वर्मा, अनिल कुमार बाजपेयी और जितेंद्र महाजन ने पिछले साल यह याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट पेश करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को विधानसभा सत्र बुलाने का निर्देश दिया जाए।
कोर्ट ने राज्य सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि CAG रिपोर्ट को तुरंत विधानसभा में चर्चा के लिए पेश किया जाना चाहिए था। अदालत ने राज्य सरकार के इस मुद्दे पर टालमटोल करने को उसकी "ईमानदारी पर संदेह" पैदा करने वाला करार दिया। CAG की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार की कुछ नीतियों की आलोचना की गई थी, जिनमें कथित तौर पर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाली आबकारी नीति भी शामिल थी। यह नीति अब रद्द की जा चुकी है।
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