ईवीएम सत्यापन का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, जिसमें हरियाणा के पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक करण सिंह दलाल ने याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के सत्यापन के लिए एक स्पष्ट नीति बनाने की मांग की है। शुक्रवार को यह याचिका पहले जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ के सामने प्रस्तुत की गई, लेकिन पीठ ने इसे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश दिया। अब इस याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ में होगी, जो इस मामले में निर्णय लेगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने की अपील
याचिका में याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा "एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म बनाम केंद्र सरकार" मामले में दिए गए आदेश का पालन करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को निर्देशित किया जाए कि वह ईवीएम के चार प्रमुख हिस्सों—कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट, वीवीपैट और सिंबल लोडिंग यूनिट—के माइक्रोकंट्रोलर की जांच कराने के लिए एक स्पष्ट प्रोटोकॉल बनाए। यह प्रोटोकॉल, याचिकाकर्ताओं के अनुसार, ईवीएम के सत्यापन की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाएगा।
याचिकाकर्ता, करण सिंह दलाल और लखन कुमार सिंगला ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में दूसरे सबसे अधिक वोट हासिल किए थे। वे कहते हैं कि चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ईवीएम की सत्यापन प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायपूर्ण हो, ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना से बचा जा सके। उनका कहना है कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस दिशा में अभी तक कोई ठोस दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसका पालन
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिसके तहत चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद दूसरे या तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को चुनाव परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर जिला निर्वाचन अधिकारी से ईवीएम सत्यापन की मांग करने का अधिकार दिया गया था। इस आदेश के अनुसार, उस निर्वाचन क्षेत्र की 5 प्रतिशत ईवीएम मशीनों की बर्न्ट मेमोरी की जांच ईवीएम बनाने वाली कंपनी के इंजीनियरों द्वारा की जाएगी। हालांकि, याचिकाकर्ता यह आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग ने इस आदेश को लागू करने के लिए कोई ठोस दिशा-निर्देश नहीं जारी किए हैं, जो कि अदालत के आदेश का उल्लंघन है।
ईवीएम की बर्न्ट मेमोरी की जांच की आवश्यकता
याचिका में यह भी बताया गया है कि चुनाव आयोग के मौजूदा मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के अनुसार केवल ईवीएम की सामान्य जांच और मॉक पोल्स के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन बर्न्ट मेमोरी की जांच को लेकर कोई विशेष निर्देश नहीं दिए गए हैं। इसके अलावा, वीवीपैट पर्चियों की जांच में भी ईवीएम बनाने वाली कंपनियों के इंजीनियरों की संलिप्तता बहुत कम है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वे चुनाव परिणामों को चुनौती नहीं दे रहे हैं, बल्कि उनका उद्देश्य केवल ईवीएम सत्यापन की प्रक्रिया को मजबूत करना है, ताकि चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जा सके।
ईवीएम की बर्न्ट मेमोरी का महत्व
ईवीएम की बर्न्ट मेमोरी उस प्रक्रिया को कहते हैं जब प्रोग्रामिंग के बाद ईवीएम की मेमोरी को स्थायी रूप से लॉक कर दिया जाता है, जिससे उसमें किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ या परिवर्तन करना संभव नहीं रहता। इस प्रक्रिया में, ईवीएम में इस्तेमाल होने वाले सॉफ़्टवेयर को वन-टाइम प्रोग्रामेबल/मास्कड चिप (हार्डवेयर) में "बर्न" किया जाता है, ताकि वह प्रोग्राम किसी भी परिस्थिति में बदल न सके। यह सुरक्षा उपाय चुनाव की निष्पक्षता और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि चुनाव परिणामों में कोई भी धोखाधड़ी या गड़बड़ी नहीं हो सकती।