महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ने गुरुवार को पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान अपने चाचा, एनसीपी के प्रमुख शरद पवार के बगल में बैठने से स्पष्ट तौर पर बचने की कोशिश की। यह घटना तब हुई जब दोनों नेता वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (वीएसआई) की सालाना आमसभा की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे। कार्यक्रम के दौरान, अजित पवार ने मंच पर अपनी सीट बदलवाकर चाचा के बजाय सहकारिता मंत्री बाबासाहेब पाटिल के पास बैठने का निर्णय लिया। इस दौरान उन्होंने मंच पर रखी नेमप्लेट भी बदलवाई, ताकि वह शरद पवार के बगल में न बैठें। इस सबने कार्यक्रम में मौजूद लोगों का ध्यान आकर्षित किया और यह घटना मीडिया की सुर्खियों में आ गई।
यह घटना महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम मोड़ को दर्शाती है, क्योंकि शरद पवार और अजित पवार के रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। जहां एक ओर दोनों पवार परिवारों के सदस्य रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चुनावी राजनीति में दोनों के बीच गहरी खाई भी बन चुकी है। चुनावों के बाद दोनों गुटों के बीच विलय की बातों का दौर चला, लेकिन इसके बाद भी दोनों पक्षों के बीच कानूनी विवाद अभी भी अदालत में जारी है। बावजूद इसके, राज्य की राजनीति में पवार परिवार का दबदबा बनाए रखने के लिए दोनों के एकसाथ आने की चर्चाएं कभी थमती नहीं हैं।
चुनाव के बाद बढ़ा टकराव
वीएसआई गवर्निंग बॉडी की बैठक के बाद, जब अजित पवार और शरद पवार मंच पर पहुंचे, तो उन्हें एक-दूसरे के बगल में बैठने का निर्णय लिया गया था। यह दृश्य हर किसी के लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि अजित पवार ने मंच पर आते ही अपनी सीट बदलवाने का अनुरोध किया और शरद पवार से अलग बैठने का फैसला किया। इसके बाद अजित पवार ने बाबासाहेब पाटिल के पास सीट ली। यह घटनाक्रम वहां मौजूद लोगों के लिए एक स्पष्ट संकेत था कि दोनों नेताओं के बीच रिश्ते उतने सहज नहीं हैं जितने पहले हुआ करते थे। दोनों के बीच इस तरह की दूरी कार्यक्रम में उनकी बातचीत में भी दिखी, क्योंकि दोनों ने एक-दूसरे के बारे में अपने भाषणों में केवल औपचारिक तौर पर ही उल्लेख किया। इससे पहले, जब दोनों ने मंच साझा किया था, तो उनकी बातचीत बहुत दोस्ताना और सामंजस्यपूर्ण रही थी, लेकिन इस बार माहौल बिल्कुल अलग था।
अजित पवार ने इस घटना को लेकर पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा, "यह कोई बड़ी खबर नहीं हो सकती। बाबासाहेब पाटिल पहली बार सहकारिता मंत्री बने हैं और उन्हें मुझसे बात करने की इच्छा थी, इसलिए मैंने बैठने की व्यवस्था बदलने की सलाह दी।" उन्होंने यह भी कहा कि उनकी आवाज़ काफी तेज़ है और पहले दो पंक्तियों में बैठे लोग उन्हें आसानी से सुन सकते हैं, इस वजह से उन्होंने अपनी सीट बदलवाने का फैसला लिया।
परिवार के एक होने की आवश्यकता
इस पूरे घटनाक्रम पर अजित पवार के भतीजे और विधायक रोहित पवार ने कहा कि अजित और शरद पवार को एक परिवार के रूप में एक साथ आना चाहिए। रोहित पवार पहले भी यह बात कह चुके हैं कि पवार परिवार को एकजुट होना चाहिए, क्योंकि राज्य की राजनीति में दोनों का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। रोहित का मानना है कि अगर पवार परिवार एकजुट रहता है तो राज्य में विपक्षी ताकतों को चुनौती देना आसान होगा। रोहित के इस बयान से यह साफ होता है कि पवार परिवार के अंदर भले ही राजनीतिक मतभेद हो, लेकिन परिवार के भीतर एकता का कोई भी संभावित कदम राज्य के राजनीतिक परिदृश्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।
इस दौरान एक दिलचस्प बात यह रही कि अजित पवार के चाचा शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार भी इस कार्यक्रम में मौजूद थीं। दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला काफी अच्छा रहा, और उनके बीच कोई राजनीतिक तनाव नहीं दिखाई दिया। यह घटना दर्शाती है कि परिवार के भीतर भले ही कुछ मुद्दों पर मतभेद हो, लेकिन व्यक्तिगत संबंधों में कोई विशेष समस्या नहीं है।
कार्यक्रम के बाद, यह जानकारी भी सामने आई कि शरद पवार और अजित पवार के बीच अलग से बातचीत हुई थी, लेकिन इस बातचीत के बारे में अब तक कोई विशिष्ट जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। यह देखा जा रहा है कि दोनों पवार परिवार के सदस्य इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से तूल देने से बच रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनका संबंध पहले जैसा सहज नहीं रहा।
चुनावी परिणाम और उनके प्रभाव
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के परिणामों की बात करें तो, अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने 59 सीटों में से 41 पर जीत हासिल की, जबकि शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी केवल 10 सीटों तक ही सीमित रही, जबकि शरद पवार ने 86 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। इस चुनावी परिणाम ने पवार परिवार में विभाजन को और भी स्पष्ट कर दिया। शरद पवार ने एनसीपी की स्थापना की थी, लेकिन पिछले साल जब अजित पवार ने अपने 41 विधायकों के साथ शरद पवार से अलग होकर एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भाजपा से गठबंधन किया, तब से दोनों के रिश्तों में दरार आ गई है। इसके बाद से दोनों के बीच राजनीतिक रिश्ते और ज्यादा जटिल हो गए हैं।
अजित पवार की पार्टी के शरद पवार से अलग होने और महायुति सरकार का हिस्सा बनने के बाद से दोनों गुटों के बीच मतभेद और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इसने न केवल पवार परिवार के रिश्तों को प्रभावित किया है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक नई दिशा दी है।
यह घटना महाराष्ट्र की राजनीति में एक और मोड़ को दर्शाती है, जहां पवार परिवार के भीतर रिश्तों की जटिलता को सामने लाया गया है। हालांकि अजित पवार और शरद पवार के बीच की राजनीति से जुड़ी बयानबाजी और बयान-प्रतिबयान जारी रहेंगे, लेकिन यह भी सच है कि इस परिवार का एकजुट होना राज्य की राजनीति में बड़ा प्रभाव डाल सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे चलकर दोनों गुटों के रिश्ते और कैसे विकसित होते हैं और क्या पवार परिवार की एकजुटता राज्य की राजनीति को नई दिशा देती है।