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International Women's Day पर भाषण, फिर "महिला आरक्षण" का विरोध !!

 14 Oct 2020

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, दुनिया भर के नेता फिर सोशल मीडिया से लेकर कैमरे के सामने तक लम्बे चौड़े बयानों को पेश करेंगे. दुर्भाग्यपूर्ण सिर्फ "पेश करेंगे" अखबारों में जगह पाने के लिए इसे संसद में पारित नहीं होने देंगे.  
पिछले वर्ष देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सुझाव दिया की आज सिर्फ महिला संसद ही सदन में बोलें. इस सुझाव को स्वीकारा गया, ना ही सिर्फ महिला संसद इस मौके पर बोली बल्कि उनकी आवाज भी गुंजी लेकिन उसका कुछ लाभ और उससे कुछ बदलाव नहीं हुआ. सोनिआ गाँधी ने सदन में "महिला आरक्षण" की बात फिरसे उठाई और इस बार भी सरकार की तरफ से वही नपा तौला जवाब दिया मिला.

संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का बिल 2010 में पास करा लिया गया था लेकिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों के भारी विरोध की वजह से ये बिल पास नहीं हो सका। इसकी वजह है दलित, पिछड़े तबके की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग। कांग्रेस के पास 2010 में अपने दम पर बहुमत नहीं था लेकिन आज मोदी सरकार के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है आखिर अब महिलाओं को उनका हक देने में क्या दिक्कत है। सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखा रही है।

राजनीति में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 20 साल से अटका हुआ है।संसद में महिला आरक्षण बिल 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और इसका कई पुरुष सांसदों ने भारी विरोध किया था। फिर साल 2010 में दोबारा पेश होने के बाद राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन लोकसभा में आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया। इतना ही नहीं लोकसभा में महिला आरक्षण बिल की कॉपी फाड़ी गई।शायद इसलिए भी क्योंकि उस समय कांग्रेस के पास अकेले बहुमत नहीं था. अब बीजेपी के पास लोकसभा में स्पष्ट बहुमत है और राज्यसभा में दोबारा बिल पास कराने की जरूरत नहीं है तो सरकार इसे पास क्यों नहीं करा रही है ?

 ये सवाल उठना लाजिमी है

-- क्या पार्टियों में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है ?
-- या फिर पुरुषवादी मानसिकता की वजह से टालमटोल किया जा रहा है ?
-- कोटे के भीतर कोटे की दलील में कितना दम है ?
-- और क्या इन्हीं मुद्दों की वजह से महिला आरक्षण बिल लटका रहेगा ?