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अमेरिका के मानवाधिकार संगठनों ने यूएपीए को दमनकारी क़ानून बताते हुए निरस्त करने की माँग की

 10 Jul 2024

भारत में मानवाधिकार हनन के बढ़ते मामलों पर दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन चिंता जता रहे हैं। मानवाधिकार के मोर्चे पर काम करने वाले अमेरिका के दो प्रमुख संगठनों ने इस संबंध में साझा बयान जारी किया है। हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR)  और भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (IAMC) द्वारा जारी इस बयान में भारत सरकार से आतंकवाद विरोधी क़ानूनों, ख़ासतौर पर UAPA को निरस्त करने, संशोधित करने या अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की माँग की है। साथ ही भारतीयों के अपने विश्वासों और राजनीतिक विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के मौलिक अधिकारों का सम्मान करने की माँग भी की गयी है।


बयान में कहा गया है कि यूएपीए को भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए बनाया गया था लेकिन वह भारत सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ हथियार बना दिया गया है। यूएपीए को "नो-बेल" कानून के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि  ज़मानत देना अदालतों के मन पर है।  यूएपीए न्यायाधीशों को गिरफ्तार किए गए लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए सात साल तक का समय देता है, जिसका मतलब है कि पुलिस के पास सबूत पेश करने के लिए सात साल का समय है। यूएपीए में सजा की दर 3% से कम है। यूएपीए में सबसे हालिया सुधारों में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने "प्रतिबंधित संगठनों" या ऐसे संगठनों से जुड़े होने के लिए व्यक्तियों पर आतंकवाद का आरोप लगाना कानूनी बना दिया है, जिन पर आतंकवादी गतिविधि से जुड़े होने का आरोप है। दिसंबर में भारत सरकार द्वारा भारत के आपराधिक और दंड संहिता में आमूल-चूल बदलाव के बाद, आतंकवाद की कानूनी परिभाषा में अब 'भाषण' और 'आर्थिक बहिष्कार' भी शामिल हैं।

बयान में कहा गया है कि वैसे यूएपीए और अन्य आतंकवाद विरोधी कानूनों को हमेशा हथियार बनाया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के राज में बीते एक दशक में ऐसे कानूनों को आलोचकों के दमन के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है। भीमा कोरेगांव मामले में जाति-विरोधी मानवाधिकार रक्षकों से लेकर उमर ख़ालिद जैसे छात्र प्रदर्शनकारियों तक, जो भेदभावपूर्ण नागरिकता कानूनों के खिलाफ लड़ रहे हैं और अब अरुंधति रॉय जैसी सम्मानित लेखिका, जो आज भारत में अन्याय के खिलाफ बोल रही हैं, ऐसे तमाम भारतीयों पर अपनी बात कहने के लिए हमले हो रहे हैं। यूएपीए के तहत कार्यकर्ताओं और पत्रकारों समेत हजारों भारतीयों को गिरफ्तार किया गया है।

बयान में भारत सरकार से भारतीयों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करने की माँग की गयी है, जिसमें उनकी अभिव्यक्ति की अंतर्निहित आज़ादी और स्वतंत्र, निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के उनके अधिकार शामिल हैं। भारतीयों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और यूएपीए और अन्य आतंकवाद विरोधी कानूनों को पूर्ण रूप से निरस्त करने या उनमें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के मानको के अनुरूप सुधार करने का आग्रह किया गया है।

हिंदूज फ़ॉर ह्यूमन राइट्स और इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के इस साझा बयान में कहा गया है, “ हम भारत सरकार से आतंकवाद की अपनी विस्तारित परिभाषा को उलटने का भी आह्वान करते हैं, हमें चिंता है कि इसका इस्तेमाल नागरिक समाज को और अधिक आपराधिक बनाने के लिए किया जाएगा। अंत में, यदि यूएपीए को निरस्त कर दिया जाता है, तो हम ऐसा कोई नया कानून नहीं देखना चाहते जो या तो यूएपीए की जगह ले या सुरक्षा राज्य का विस्तार करने और आतंकवाद विरोधी के नाम पर भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए अपनी कठोर विरासत का निर्माण करे। एक सक्रिय लोकतंत्र में अपनी राय व्यक्त करना आतंकवाद का काम नहीं है। यह आपका अधिकार है, असहमति लोकतंत्र की रीढ़ है।”