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उत्तराखंड में जंगलों की आग पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार पर उठाये सवाल
15 May 2024
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को लेकर फंडिंग की कमी और वन अधिकारियों को चुनावी ड्यूटी में लगाये जाने पर सवाल उठाये हैं। कोर्ट ने लापरवाही पर उत्तराखंड सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार से भी तीख़े सवाल किये हैं। सुप्रीम कोर्ट मई के शुरुआत से ही उत्तराखंड में जंगलों की आग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा हैं। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ कर रही है।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने फंड की कमी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को घेरा है। कोर्ट ने फंड की कमी को काफ़ी खेदजनक बताते हुए इसकी निंदा की है। आग से निपटने के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से 10 करोड़ रुपयों की माँग की थी लेकिन केंद्र ने 3.15 करोड़ रूपये ही दिये, जिसकी कोर्ट ने आलोचना की है। अधिकारियों के चुनावी ड्यूटी मामले पर राज्य के क़ानूनी प्रतिनिधि ने कहा, “मुख्य सचिव ने हमें निर्देश दिया है कि अब किसी भी वन अधिकारी को चुनावी ड्यूटी पर न लगाया जाये। जिनको हमने ड्यूटी का आदेश दिया हुआ है, उसको वापस ले लिया जायेगा।”
जंगलों में आग एक बड़ा मुद्दा
उत्तराखंड में पिछले साल नवंबर से जंगलों में आग की सैकड़ों घटनायें हुई हैं। जिसके कारण 1,145 हेक्टेयर जंगल की ज़मीन को नुक़सान पहुंचा है। याचिका के अनुसार कम से कम 910 ऐसी घटनायें हो चुकी है। आग पर काबू पाने के लिए राज्य भी कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है।
राज्य सरकार ने दावा किया है कि कुल वन क्षेत्र का केवल 0.1 फ़ीसद क्षेत्र ही आग से प्रभावित हुआ है। राज्य में वन का क्षेत्रफल राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45 फ़ीसद है। सरकार ने कहा कि जंगलों में आग की घटना कोई नयी बात नहीं है, इसके लिए राज्य छोटे और लंबे समय की सभी योजनाओं पर काम कर रहा है। सरकार आग लगाने वाले दोषियों के ख़िलाफ़ भी सख़्ती से निपटेगी। ख़बरों के अनुसार वन में आग लगने के कारण 5 लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। सरकार ने कुछ लोगों को आग लगाने के आरोप में गिरफ़्तार भी किया है।
कोर्ट पहले लगा चुका है फटकार
कोर्ट पहले भी जंगलों में आग से निपटने की विफलता पर राज्य सरकार को फटकार लगा चुका है। पिछले सप्ताह कोर्ट ने जंगलों में आग को बुझाने के लिए अधिक प्रयासों वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये थे। कोर्ट ने सरकार को हिदायत दी कि राज्य पर्यावरण पर निर्भर रहने के बज़ाय ख़ुद प्रयास करने पर ज़्यादा जोर दे।
इसके अलावा एक्टिविस्टों ने भी जंगलों में आगों की गंभीरता को कम आँकने पर राज्य सरकार की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि आग बुझाने वाले कर्मियों को बिना पूरे उपकरणों के साथ काम करना पड़ता है।