
Article
रामचरित मानस विवाद का सच के पीछे क्यों मचा है बवाल, जानिए क्या है पूरा मुद्दा !!
07 Feb 2023

"राम-नाम की लूट है, लूट सको तो तो लूट लो !" यह कहावत तो आप सभी ने सुनी ही होगी। राम अयोध्या में जितने दिन नहीं रहे, उसे ज्यादा तो मौजूदा समय के राजनेता उन्हें अपने फायदे के लिए आज भी अपने बीच किसी ना किसी बहाने से ले ही आते है। ऐसे में रामचरितमानस से निकली एक चौपाई पर अब जमकर राजनीति की जा रही है। वो भी ये चौपाई वाला जिन्न कहीं ओर से नहीं बल्कि बिहार की धरती से ही निकला है।
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर एक कॉलेज के दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों के बीच पहुंचे थे, जहां उन्होंने रामचरित मानस और मनु स्मृति पर सवाल उठा दिए। शिक्षामंत्री ने अपने बयान में यहां तक कह दिया कि ऐसी पुस्तकों को जला देना चाहिए ! इस बयान पर जमकर राजनीति हो रही है, कुछ हिंदू संगठनों ने तो जगह-जगह पर चंद्रशेखर के पुतले भी जलाएं, तो वहीं दूसरी तरफ धर्म-गुरुओं ने ज़बान (जीभ) काटने के लिए इनामी राशि तक की घोषणा कर दी। इसके बावजूद अगले दिन फिर मीडिया के सामने शिक्षा मंत्री आते है और कहते है वो अब भी अपने बयान पर कायम है।

बिहार जहां हवा का रुख भी बदले तो विपक्ष राजनीति करना नहीं छोड़ती, वहां इतने बड़े मुद्दे को कैसे जाने देती, इस्तीफा मांगने का दौर भी शुरु हुआ। साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री जो कि समाधान यात्रा पर है, इस दौरान तो यात्रा पर भी राजनीति शुरु की जाती है।
रामचरित मानस के दो चौपाइयों को लेकर प्रभु राम को कटघरे में खड़ा कर दिया गया है।
- पहली चौपाई है -
'ढोल गंवार सूद्र पसु नारी।'
"सकल ताड़ना के अधिकारी॥" - दूसरी चौपाई है -
'पूजहि विप्र सकल गुण हीना।'
"शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा॥"
('ढोल गंवार सूद्र पसु नारी।' "सकल ताड़ना के अधिकारी॥")
इस चौपाई के हिसाब से ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं। तुलसीदास जी के कहने का भाव है कि ढोलक, गंवार, वंचित, जानवर और नारी, यह पांच लोग पूरी तरह से जानने के विषय हैं और इन्हें जानें बिना इनके साथ व्यवहार करने से सभी का नुकसान होता है। ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाए तो उससे ठीक से आवाज नही निकलेगी। ऐसे ही अनपढ़ इंसान आपकी किसी बात का गलत मतलब निकाल सकता है। वंचित व्यक्ति को भी जानकर ही आप किसी काम में उसकी मदद कर सकते है। इसी तरह पशु हमारे व्यवहार क्रियाकलाप या किसी गतिविधि से डर जाते है या आहत हो जाते हैं और असुरक्षा का भाव उन्हें कुछ भी करने पर मजबूर कर सकता है। इसी चौपाई में तुलसीदास गोस्वामी ने नारी शब्द का इस्तेमाल किया है यहां उनका आशय है कि नारी की भावना को समझे बिना उसके साथ आप जीवन यापन नहीं कर सकते। ऐसे में आपसी सूझबूझ बहुत जरूरी है। हालांकि कई धर्म गुरुओं सुंदर काण्ड की इस चौपाई के बारे में कहते है कि इस चौपाई में बदलाव किया गया है। असली चौपाई कुछ ऐसे थी "ढोल गवार क्षुब्द पशु रारी यह सब ताड़न के अधिकारी।" इसमें ढोल का मतलब बेसुरा ढोलक, गवार मतलब अनपढ़ इंसान और क्षुब्द पशु से आशय आवारा जानवर है जो लोगों को नुकसान कर सकते हैं और रार का मतलब होता है कलह करने वाले।
("पूजहि विप्र सकल गुण हीना।
शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा॥")
दूसरी चौपाई का मतलब कुछ ऐसे निकाला जाता है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान और गुण से दूर हो तब भी वो पूजा के योग्य है और शूद्र यानी दलित चाहे कितना भी गुणी हो ज्ञानी हो लेकिन फिर भी वो सम्मान योग्य नही है। यहां भी विप्र और शुद्र का मतलब गलत निकाला गया। विप्र का मतलब है वो इंसान जिसका आत्मा से सीधे साक्षात्कार हो गया हो, जो सभी बंधनों मोह-माया से मुक्त हो गया लेकिन बाहरी रूप से जड़ स्वरूप हो। संभव है बाहर से उसमें कोई गुण भी ना दिखाई दे तो भी वो पूज्यनीय है और ऐसा इंसान जो कि किताब पढ़कर ज्ञान तो बांटता फिरे लेकिन असल में ना तो उसे शास्त्रों के अर्थ का पता हो और ना ही वो उसके व्यवहार और सोच में उसका कोई असर हो तो ऐसा व्यक्ति कभी भी पूज्यनीय नहीं हो सकता।
वहीं बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से भी सवाल किया जाता है, तेजस्वी कहते है इस बात की जानकारी नहीं है, उनसे बात करके बताते है। अब बिहार से उठी आग आगे बढ़ती है उत्तर प्रदेश की तरफ जहां स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसीदास रचित रामायण पर रोक लगाने की बात कही है। मौर्य ने कहा कि तुलसीकृत रामायण में शूद्रों और महिलाओं का अपमान किया गया है। अगर सरकार इस ग्रंथ पर रोक नहीं लगा सकती तो उन दोहों, चौपाई और श्लोकों को हटा देना चाहिए। वही इस बात के समर्थन में समाजवादी पार्टी के बांदा के पूर्व विधायक ब्रजेश प्रजापति भी आए और इनका कहना है कि इसमें आदिवासी, महिला, शूद्रों का अपमान किया जा रहा है इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाए। इसी के साथ पूरे मामले पर बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि इस पूरे मामले में भाजपा की प्रतिक्रिया और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों की चुप्पी साफ बता रही है कि "उनकी मिली भगत है और ऐसे में उनकी संकीर्ण सोच साफ नजर आ रही है।"

अब इस पूरे मामले को ध्यान से पढ़ा और देखा जाए तो जहां एक तरफ रामचरित मानस को लेकर दलित के मुद्दों को हवा देने की कोशिश की जा रही है तो भाजपा इसी की आड़ में कोशिश कर रही है और राम मंदिर के नाम पर अगड़े, पिछड़े या दलितों जैसी कोई दीवार ना दिखें, हर जगह राम मंदिर बनने की तारीख से लेकर निर्माण काम में तेजी से पूरा करने में जुटी है। ये तो तय है कि साल 2024 के चुनावी मुद्दों में राम मंदिर अहम होगा, इसलिए राम से जुड़ी बात चाहे वो मानस की हो या मंदिर की, ये दोनों मुद्दे बीजेपी के लिए कोई ट्रंप कार्ड से कम नहीं है। यही कारण है कि बीजेपी के तमाम नेता के बयान चाहे हिमंत बिस्वा हो या दिनेश शर्मा सबके के बयान रामचरितमानस से लेकर राम नाम से जुड़े मंदिर की तरफ मुड़ रहे है।

रामायण तो वाल्मीकि ने लिखी थी लेकिन संस्कृत में होने के चलते राम हर घर में नही पहुंच पाए। तुलसीदास गोस्वामी ने रामचरित मानस लिख कर घर-घर तक राम पहुंचा दिया और आम परिवार से राम का नाता जोड़ दिया। एक त्यागी पुत्र, आदर्श राजा, बेहतर पति, अच्छा भाई, शानदार मित्र दरअसल खूबियों से अटा हुआ है राजा राम का पूरा जीवन चरित। तुलसीदास ने इस चरित को अवधी भाषा में पिरोकर एक ऐसा दस्तावेज बना दिया जो लोगों की जिंदगी का आधार बन गया। बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड इन 7 काण्डों में तुलसीदास ने पूरे राम को कह डाला। माना जाता है वाल्मिक जी की रामायण में उत्तरकाण्ड को बाद में शामिल किया गया, वो लंका काण्ड में ही खत्म हो जाती है और राम चरित मानस में भी ऐसा ही है।

अब ऐसे में बिहार से मानस का जो जिन्न निकला है वो उत्तर प्रदेश और दिल्ली पहुंच चुका है। जिस पर बीजेपी खुलकर खेल रही है। ऐसे चौपाईयों पर प्रतिबंध लगे या ना लगे लेकिन सरकार राम नाम के धन को बखूबी लूटना जानती है।
- ऐसे में कुछ सवाल सभी के दिमाग में जरूर उठ रहे है कि क्या वास्तव में रामचरित्र मानस पर जो बहस चल रही है वो जरूरी है?
- क्या असल में बहस एक स्वस्थ्य देश के लिए मूलभूत तीन चीजों पर नहीं होनी चाहिए, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय शामिल है?
- कोरोना के समय जिस तरह हजारों लोग बिना इलाज के मर गए, क्या उस पर काम नहीं होना चाहिए?
- वहीं क्या पंक्ति के आखिर व्यक्ति तक को सही समय पर न्याय मिल रहा है?
- सबसे बड़ी बात जो हमारे देश का भविष्य है युवा और बच्चे क्या उन सभी को एक बराबर मौके और शिक्षा की सुविधा मिलती है?
- क्या इस नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को ये बहस के मुद्दे नहीं लगते हैं?
यह भी पढ़ें :- https://www.molitics.in/article/1079/journalist-siddique-kappan-did-not-get-complete-justice-even-after-28-months