Haryana Ayushman Yojana: बकाया 500 करोड़, इलाज ठप! योजना से पीछे हटे हरियाणा के निजी अस्पताल
हरियाणा के लगभग 650 निजी अस्पतालों ने घोषणा की है कि वे 7 अगस्त से आयुष्मान भारत के तहत इलाज देना बंद कर देंगे। वजह है सरकार द्वारा अस्पतालों का 500 करोड़ रुपए से अधिक का बकाया। मार्च 2025 से लेकर अब तक अस्पतालों को उनके इलाज के बिल का केवल 10% से 15% ही पैसा वापस मिला है। इस वजह से अस्पतालों के सामने स्टाफ की सैलरी, दवाइयों की खरीद, बिजली-पानी जैसे खर्च पूरे करना तक मुश्किल हो गया है। Indian Medical Association यानी IMA के अध्यक्ष डॉ. महावीर जैन का कहना है कि कुछ अस्पतालों ने मरीजों को एडमिट करना बंद कर दिया है और कई ने अपने internal reserves से व्यवस्था को अब तक चलाया है। लेकिन अब हालात इस कगार पर पहुंच चुके हैं जहां अस्पतालों के पास कोई विकल्प नहीं बचा। गुरुग्राम जैसे बड़े शहरी इलाकों के भी कई प्रमुख अस्पताल इस फैसले में शामिल हैं। अस्पतालों ने कहा है कि सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं जारी रहेंगी, बाकी सभी नियोजित सर्जरी और नियमित इलाज रोके जाएंगे।
आयुष्मान भारत योजना, जिसे केंद्र सरकार ने 2018 में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के रूप में शुरू किया था, देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना मानी जाती है। इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों को हर साल 5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज मुहैया कराना है। लेकिन योजना में भुगतान की प्रक्रियाएं इतनी धीमी और जटिल हो गई हैं कि अस्पतालों के लिए इसका संचालन एक बड़ा बोझ बन चुका है। हालांकि ये पहली बार नहीं है जब IMA ने इस तरह की चेतवानी दी हो। इससे पहले जनवरी 2025 में भी IMA ने इसी तरह की चेतावनी दी थी, लेकिन सरकार की ओर से आश्वासन मिलने के बाद उस समय फैसला टाल दिया गया था। इस बार हालात और ज़्यादा गंभीर हो चुके हैं। बिना भुगतान के अस्पताल इस योजना को और आगे नहीं ढो सकते। और बिना अस्पतालों के साथ, यह योजना सिर्फ एक सरकारी कागज़ बनकर रह जाएगी।
एक तरफ़ कुछ अस्पतालों को पैसा नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ़ सरकार बिना जांच पड़ताल के करोड़ों रुपयों को ट्रांसफर कर रही है। उत्तर प्रदेश में 1 मई 2025 से 22 मई 2025 के बीच 39 अस्पतालों में 6239 फर्जी मरीजों के इलाज दिखाकर करीब 9.94 करोड़ रुपये ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिए गए। आयुष्मान योजना के पेमेंट की प्रक्रिया को State Agency for Comprehensive Health and Integrated Services यानी SACHIS मॉनिटर करता है। जब कोई मरीज़ आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज करवाता है, तो उसे अस्पताल में पैसे नहीं देने पड़ते। इलाज का सारा खर्च सरकार उठाती है। लेकिन सरकार सीधे अस्पताल को कैश नहीं देती, बल्कि इसका एक पूरा ऑनलाइन सिस्टम बना हुआ है, जिससे अस्पताल को पेमेंट मिलता है। सबसे पहले, मरीज़ के इलाज के बाद अस्पताल उसका सारा खर्चा जैसे ऑपरेशन, दवाइयाँ, बेड चार्ज वगैरह सरकारी पोर्टल पर अपलोड करता है।
इस पोर्टल का नाम है National health authority का क्लेम पोर्टल, जिसे हर राज्य की स्वास्थ्य एजेंसी इस्तेमाल करती है। उसके बाद एक एजेंसी जैसे उत्तर प्रदेश में SACHIS उस अपलोड किए गए क्लेम की जांच करती है। यानी अस्पताल जो खर्च दिखा रहा है, वो सही है या नहीं, इसका ऑडिट किया जाता है। ये काम ऑनलाइन लॉगिन सिस्टम से होता है। SACHIS के अफसर अपने आईडी-पासवर्ड से लॉग इन करते हैं, फाइल चेक करते हैं, और अगर सब सही होता है तो उसे अप्रूवल देते हैं। फिर ये फाइल आगे जाती है Finance Officer और फिर Chief Executive Officer के पास। वो भी अपनी डिजिटल आईडी से लॉग इन करके उस फाइल को मंज़ूरी देते हैं। जब ये दोनों मंजूरी मिल जाती हैं, तो आगे की प्रक्रिया शुरू होती है। अब मंजूरी मिल जाने के बाद, बैंक के जरिए पैसा सीधे अस्पताल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। ये सारा सिस्टम डिजिटली होता है, जिससे माना जाता है कि घपला नहीं हो सकता। लेकिन असलियत कुछ और ही सामने आई है। फ़र्ज़ी पेमेंट डायरेक्ट स्टेट हेल्थ एजेंसी के एजेंसी के CEO, फाइनेंस ऑफिसर की Login-ID से की गई।
आयुष्मान योजना को लेकर CAG रिपोर्ट में क्या?
आयुष्मान भारत में इस तरह का पहला मामला नहीं है। साल 2023 में CAG ने भी अपनी रिपोर्ट में इसी तरह के खुलासे किए थे। CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि साल 2018 से 2021 के बीच जिन लोगों को आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज मिला है उनमें से करीब साढ़े सात लाख लोगों के नाम पर एक ही मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड था 9999999999. ये नंबर किसी असली व्यक्ति का नहीं, बल्कि सिस्टम में डमी नंबर के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। 1.39 लाख लाभार्थी एक और डमी नंबर – 8888888888 से जुड़े मिले और 96 हजार से ज्यादा लोगों के नाम पर 9000000000 नंबर दर्ज था। यानी लाखों लोग ऐसे थे जिनका असली मोबाइल नंबर कभी डाला ही नहीं गया। मोबाइल नंबर सिर्फ संपर्क के लिए नहीं, बल्कि वेरिफिकेशन और ट्रैकिंग के लिए भी ज़रूरी होता है। जब एक ही नंबर पर इतने सारे नाम जुड़ जाते हैं, तो ये तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि इलाज वाकई किसी ज़रूरतमंद को मिला या नहीं। इससे फर्जीवाड़े की ज़मीन तैयार होती है, जो हुई भी।
CAG की रिपोर्ट में ऐसे कई मामले पकड़े जहाँ कुछ मरीज़ों ने एक ही दिन में दो या तीन अस्पतालों में अलग-अलग बीमारियों का इलाज दिखाया, और सभी अस्पतालों ने उसके नाम पर पैसा क्लेम कर लिया। किसी ने इसे चेक नहीं किया कि एक आदमी कैसे एक ही समय में अलग-अलग शहरों में भर्ती हो सकता है। इसका मतलब ये नहीं कि मरीज ही हमेशा दोषी थे कई बार अस्पतालों ने भी जानबूझकर फर्जी भर्ती दिखाकर पैसा हासिल किया। इससे साफ़ पता चलता है कि डेटा ट्रैकिंग और रियल टाइम वेरिफिकेशन जैसी जरूरी चीज़ें सिस्टम में मौजूद ही नहीं थीं। आयुष्मान योजना में सरकार की लापरवाही की हद तब पार हो जाती है जब मरे हुए लोगों के नाम पर भी इलाज का पैसा बांटा जाता है। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि 88,760 मरीजों की मौत इलाज के दौरान हो चुकी थी, लेकिन उनके नाम से जुड़े 2,14,923 दावों का पेमेंट फिर भी कर दिया गया। मतलब ये कि मौत हो जाने के बाद भी सिस्टम में वही मरीज़ ज़िंदा माना गया और अस्पतालों को उनके इलाज का भुगतान मिलता रहा। ज़्यादातर ऐसे मामले छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश से जुड़े थे।
इसका सीधा मतलब ये है कि न तो किसी ने मौत की पुष्टि की, और न ही डेटा को अपडेट किया गया। ऐसी गड़बड़ियाँ तभी होती हैं जब क्लेम पास करने की प्रक्रिया में कोई मानवीय या तकनीकी निगरानी नहीं होती। कुछ अस्पतालों ने जानबूझकर मौत छिपाई और इलाज चलता हुआ दिखाया ताकि पैसा लिया जा सके। कुछ मामलों में सिस्टम ने खुद ही ये पकड़ने की कोशिश नहीं की कि मरीज जिंदा है या नहीं। CAG की इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एक ही व्यक्ति को कई बार रजिस्टर किया गया। कुछ मामलों में एक ही आधार नंबर से दो-दो रजिस्ट्रेशन कर दिए गए। तमिलनाडु में तो सिर्फ 7 आधार नंबरों से 4,761 बार रजिस्ट्रेशन किया गया था। यानी एक ही पहचान से सैकड़ों लाभार्थी बना दिए गए। परिवार के आकार को लेकर भी भारी गड़बड़ी मिली। रिपोर्ट के मुताबिक 43,197 घरों में परिवार का आकार 11 से लेकर 201 लोगों तक बताया गया। एक ही घर में इतने सदस्य असलियत में मुमकिन नहीं है।
आयुष्मान योजना से जुड़ी 37,903 शिकायतें दर्ज
अगर किसी भी योजना में जवाबदेही नहीं हो, तो गड़बड़ियाँ कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती हैं। आयुष्मान भारत योजना में भी यही हुआ। शिकायतें तो हज़ारों आईं, पर ज़्यादातर का निपटारा समय पर नहीं हुआ। आयुष्मान भारत योजना से जुड़ी 37,903 शिकायतें दर्ज की गईं, लेकिन सिर्फ 3,718 शिकायतों का समाधान 15 दिनों के भीतर किया गया। यानी बाकी शिकायतें या तो लंबित रहीं या उनमें बेवजह देरी हुई। इसके अलावा, असम और झारखंड के 13 अस्पतालों पर भ्रष्टाचार की शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यानी जिन संस्थाओं पर सवाल उठे, वो जस की तस चलती रहीं। और जिन मरीजों या परिवारों ने गड़बड़ी की शिकायतें दर्ज कीं, उनकी सुनवाई महीनों तक नहीं हुई। आयुष्मान भारत को दुनिया की एक बड़ी हेल्थ स्कीम कहा गया एक ऐसा वादा, जो गरीब और जरूरतमंद लोगों को बिना पैसे के इलाज देने के लिए बनाया गया था।
CAG की रिपोर्ट और हाल ही में सामने आए घोटालों ने इस योजना की बुनियाद को ही सवालों के घेरे में ला दिया है। लाखों लाभार्थियों के नाम फर्जी निकले, एक ही मोबाइल नंबर से हजारों लोग जुड़े मिले, मरे हुए मरीजों के नाम पर इलाज के बिल पास हुए, और एक ही आधार नंबर से सैकड़ों बार रजिस्ट्रेशन कर दिया गया। कुछ अस्पतालों ने जानबूझकर सिस्टम की कमजोरियों का फायदा उठाया, और बहुत से मामलों में मरीज़ों को पता तक नहीं था कि उनके नाम पर क्या चल रहा है। सबसे चिंताजनक बात यह रही कि 37,000 से ज़्यादा शिकायतों में से ज्यादातर को या तो नजरअंदाज कर दिया गया, या फिर महीनों तक लटका कर रखा गया। जांच तो हुई, लेकिन कार्रवाई नहीं। भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जिस तरीके से इन शिकायतों पर नरमी बरती गई, और जिन अस्पतालों के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत थे उन्हें खुला छोड़ा गया, वो इस ओर इशारा करता है कि कहीं न कहीं सिस्टम के अंदर के लोग भी इस फर्जीवाड़े में शामिल हो सकते हैं। जब गड़बड़ियाँ इतने लंबे समय तक अनदेखी की जाएँ, तो महज लापरवाही कहना काफी नहीं होता।
असल सवाल यही है क्या ये योजना सच में गरीबों के इलाज के लिए बनी थी, या फिर कुछ लोगों के लिए पैसे कमाने का ज़रिया बन गई? जिन अस्पतालों में फ़र्ज़ीवाडा चल रहा है वहाँ बिना जांच के पैसे दिए जा रहे हैं। और जिन अस्पतालों ने वाक़ई में इलाज किया उनका बकाया अब तक नहीं चुकाया गया। जिससे उन्होंने इस स्कीम से ख़ुद को अलग कर लिया है। कागज़ों पर भले ही इलाज फ्री दिखे, लेकिन ज़मीन पर बीमारी का बोझ अब भी गरीब ही उठाता रहेगा।