
मजबूत नहीं, विफल विदेश नीति, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का मोदी सरकार पर निशाना
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने विदेश नीति और कूटनीतिक रणनीति को लेकर केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की कथित "शक्तिशाली विदेश नीति" दरअसल सिर्फ जनसंपर्क अभियान तक सीमित रह गई है और अब वह पूरी तरह से विफल होती दिख रही है। एक्स पर साझा किए गए एक विस्तृत पोस्ट में खेड़ा ने कई ऐसे घटनाक्रमों का उल्लेख किया, जिन्हें उन्होंने भारत की गिरती वैश्विक स्थिति के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, "भारत अपने घर में शोर मचाता है, लेकिन विदेश में अकेला पड़ गया है।"
खेड़ा के अनुसार, विदेश नीति के मोर्चे पर भारत को एक के बाद एक झटके झेलने पड़े हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पाकिस्तान को न केवल चीन, रूस, ईरान, तुर्की और मलेशिया का समर्थन मिला है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में चीन ने हमलावरों के नाम उजागर करने से भी रोक दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत के कालापानी क्षेत्र पर नेपाल ने दोबारा दावा जताते हुए नया नक्शा जारी किया, जबकि कश्मीर को लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और पश्चिम एशियाई देशों ने भारत पर लगातार निशाना साधा है।
खेड़ा ने आगे कहा कि सऊदी अरब द्वारा भारत समेत 14 देशों के लिए वीज़ा निलंबित करना विदेश नीति को लगे ताजा झटकों में से एक है। इसके अलावा, कनाडा के साथ खालिस्तान विवाद के चलते G7 जैसे मंच पर भारत को दरकिनार किया गया, जबकि G20 सम्मेलन में कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी। उन्होंने मालदीव और श्रीलंका के चीन की ओर झुकाव, बीजिंग को दी गई रणनीतिक परिसंपत्तियों की लीज, नेपाल द्वारा क्षेत्रीय दावे और रूस-पाकिस्तान के बीच सैन्य-ऊर्जा समझौतों को भी भारत के लिए चिंता का विषय बताया। खेड़ा के मुताबिक, BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) अब चीन के मुखपत्र बन चुके हैं।
अपने पोस्ट में उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आर्थिक संकट के बावजूद पाकिस्तान ने विश्व बैंक, आईएमएफ और एशियाई विकास बैंक से अरबों डॉलर की सहायता हासिल की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को जोरशोर से उठाया। उन्होंने कहा कि तुर्की ने पाकिस्तान के समर्थन में युद्धपोत भेजा, ईरान ने मध्यस्थता की पेशकश की और कतर, कुवैत तथा मलेशिया ने इस्लामाबाद के रुख का समर्थन किया। खेड़ा ने निशाना साधते हुए कहा, "इस सरकार की तथाकथित ताकतवर विदेश नीति अब उसके पीआर तंत्र के बोझ तले ही दम तोड़ चुकी है। भारत देश के भीतर जितना मुखर है, वैश्विक मंचों पर उतना ही अकेला दिखाई देता है।"
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