सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती, 13 साल की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों की याचिका नामंजूर

सुप्रीम कोर्ट ने एक स्कूली बच्ची के अपहरण और बलात्कार के मामले में अत्यंत सख्त रुख अपनाते हुए दोषियों की अपील को खारिज कर दिया।  सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई की और दोषियों, संजय पैकरा और पुस्तम यादव, की अपील को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट शब्दों में अपनी नाराजगी व्यक्त की। अदालत ने कहा, “यह अत्यंत गंभीर मामला है। आरोपी ने वैन चालक के साथ मिलकर एक स्कूल की नाबालिग छात्रा का अपहरण किया और उसका बलात्कार किया।” इस बयान से साफ है कि अदालत ने इस जघन्य अपराध को किसी भी तरह से बर्दाश्त करने से इनकार कर दिया।


यह घटना 2019 की है, जब 13 वर्षीय एक स्कूली छात्रा को पिकनिक पर ले जाने के बहाने अपहरण किया गया और उसका बलात्कार किया गया। पीड़िता और उसकी मां ने 18 नवंबर, 2019 को इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई थी। जांच और सुनवाई के बाद निचली अदालत ने 5 अक्टूबर, 2021 को अपने फैसले में दोषियों, संजय पैकरा, पुस्तम यादव और तीसरे आरोपी संतोष कुमार गुप्ता, जो स्कूल में वैन चालक था, को दोषी ठहराया। 

निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत इन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 1000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। इसके बाद, दोषियों ने निचली अदालत के फैसले को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी। 5 अगस्त, 2024 को हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषियों की अपील खारिज कर दी। हाई कोर्ट के इस निर्णय को संजय पैकरा और पुस्तम यादव ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी अपील को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की ओर से यह तर्क दिया गया कि पीड़िता ने इस मामले में सहमति दी थी। हालांकि, अदालत ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “वह नाबालिग है, यह साबित हो चुका है और अब किसी और चीज की जरूरत नहीं है।” यह बयान न केवल दोषियों की दलील को खारिज करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि नाबालिगों के मामले में सहमति का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता। POCSO Act के तहत, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन संबंध, चाहे सहमति से हो या बिना सहमति के, अपराध माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख नाबालिगों के प्रति यौन अपराधों के खिलाफ कठोर कानूनी ढांचे को और मजबूत करता है।

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