पश्चिम बंगाल चुनाव नतीजों के बाद हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- ये लोकतंत्र की नींव पर हमला है, 4 की जमानत रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक कार्यकर्ता और उसकी पत्नी पर हमले के मामले में चार आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह  नृशंस अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला है और ऐसे मामलों में नरमी नहीं बरती जा सकती। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा 24 जनवरी और 13 अप्रैल 2023 को जारी जमानत आदेशों को निरस्त कर दिया। यह फैसला सीबीआई द्वारा दाखिल अपील के आधार पर आया, जिसमें पांच आरोपियों—शेख जमीर हुसैन, शेख नूराई, शेख असरफ उर्फ एसके राहुल, जयंत डोम और शेख कबीरुल को मिली जमानत को चुनौती दी गई थी।


यह घटना 2 मई 2021 को हुई थी, जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के नतीजे आए थे। शिकायतकर्ता का आरोप है कि भाजपा का समर्थन करने के कारण उसके घर पर सुनियोजित हमला किया गया, तोड़फोड़ की गई और सामान लूटा गया। हमलावरों ने शिकायतकर्ता की पत्नी को बालों से घसीटा और जबरन कपड़े उतारने का प्रयास किया। जब महिला ने आत्मदाह की धमकी दी, तो हमलावर भाग खड़े हुए। स्थानीय पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया और पीड़ित परिवार को गांव छोड़ने की सलाह दी, जिससे यह संदेह और पुख्ता हो गया कि आरोपियों का स्थानीय पुलिस और इलाके पर प्रभाव है।

घटना के बाद शिकायतकर्ता को इंसाफ तब मिला, जब 19 अगस्त 2021 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने चुनाव के बाद हिंसा से जुड़े सभी मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी। इसके बाद ही FIR दर्ज की गई।अदालत ने कहा कि इस मामले में "प्रथम दृष्टया पर्याप्त साक्ष्य हैं कि आरोपियों ने गैरकानूनी रूप से एकजुट होकर हमला किया, घर में लूटपाट की और यौन हिंसा का प्रयास किया।" अदालत ने यह भी कहा कि यह सिर्फ एक निजी हमला नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध का मामला है जिसका उद्देश्य विरोधी दल के समर्थकों को डराना और कुचलना था।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल में लगातार देरी हो रही है, जबकि आरोपपत्र 2022 में दाखिल हो चुका है। अदालत ने रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि यह देरी "आरोपियों के असहयोग और जानबूझकर की गई बाधाओं" के कारण हुई है। अदालत ने कहा, “ऐसे हालात में अगर आरोपियों को जमानत पर रहने दिया गया, तो निष्पक्ष सुनवाई की कोई संभावना नहीं रहेगी।” अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह छह महीनों के भीतर सुनवाई पूरी करे। साथ ही, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को यह भी निर्देशित किया गया कि शिकायतकर्ता और सभी प्रमुख गवाहों को सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे बिना किसी डर के गवाही दे सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उसके निर्देशों का उल्लंघन होता है, तो सीबीआई या शिकायतकर्ता अदालत को सूचित कर सकते हैं और उचित कार्रवाई की जाएगी।

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