IMF की शर्तों पर टिका पाकिस्तान: एक अरब डॉलर की राहत, पर संप्रभुता की कीमत पर
आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से एक अरब डॉलर की वित्तीय सहायता मिलना लगभग तय हो गया है। यह रकम एक नए कर्ज कार्यक्रम की किस्त के रूप में दी जाएगी, जिसे पाकिस्तान के लिए एक “संजीवनी” के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि इस आर्थिक राहत की एक बड़ी कीमत भी है। पाकिस्तान की आत्मनिर्भरता और नीतिगत संप्रभुता अब लगभग IMF के निर्देशों पर निर्भर हो चुकी है।
बीते वर्षों में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकटों से गुजर रही है। बढ़ता हुआ विदेशी कर्ज, घटते विदेशी मुद्रा भंडार, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक अस्थिरता ने देश को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां बिना बाहरी मदद के आगे बढ़ना मुश्किल होता जा रहा है। यही वजह है कि पाकिस्तान बार-बार IMF, वर्ल्ड बैंक, चीन और सऊदी अरब जैसे देशों और संस्थाओं की तरफ देखता रहा है। चीन ने कई बार इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कर्ज दिया, तो वहीं सऊदी अरब ने सस्ता तेल और नकद आर्थिक सहयोग दिया। लेकिन इस वित्तीय मदद की शर्तें इतनी कड़ी होती हैं कि पाकिस्तान की नीतियां अब स्वतंत्र रूप से तय नहीं हो पा रहीं।
अब हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि पाकिस्तान अपने राष्ट्रीय बजट को भी खुद से तय नहीं कर सकता।
2 जून को पेश होने वाले वार्षिक बजट से पहले ही IMF की एक उच्च स्तरीय टीम इस्लामाबाद पहुंच गई है। यह टीम पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बजट के मसौदे पर व्यापक चर्चा करेगी और उसी के आधार पर अंतिम बजट तैयार किया जाएगा। यानी बजट पेश करने से पहले IMF की ‘हरी झंडी’ जरूरी हो गई है।
जानकारी के अनुसार, IMF की यह टीम यह भी तय करेगी कि बजट में किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाए। उदाहरण के लिए, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए कितना फंड जारी होगा, शिक्षा और स्वास्थ्य पर कितना व्यय किया जाएगा, सब्सिडी में क्या कटौती की जा सकती है, और सबसे अहम – पहले से लिए गए कर्जों पर ब्याज चुकाने के लिए कितनी राशि रखी जाएगी। साथ ही, IMF यह भी चाहता है कि पाकिस्तान बजट में एक 'बफर' तैयार करे, ताकि किसी आकस्मिक संकट की स्थिति में खर्च के लिए अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध हों।
IMF ने इस नई किस्त को जारी करने के लिए पाकिस्तान के सामने 11 और नई शर्तें रख दी हैं। इसके साथ ही अब तक कुल मिलाकर IMF की तरफ से पाकिस्तान पर लगभग 50 शर्तें लागू हो चुकी हैं, जिनमें टैक्स सुधार, ऊर्जा सब्सिडी में कटौती, राजकोषीय घाटा कम करना, घाटे वाले सरकारी उपक्रमों का निजीकरण, और सरकारी खर्चों में भारी कटौती जैसी कड़ी मांगें शामिल हैं।
ये सभी शर्तें पाकिस्तान की आम जनता के लिए और अधिक कठिनाई भरी साबित हो सकती हैं, क्योंकि इसका सीधा असर महंगाई, रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर पड़ता है। पहले ही पाकिस्तान में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है, और आम लोगों की आय उस रफ्तार से नहीं बढ़ रही है। IMF के दबाव में दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती से आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां बाहरी कर्ज के बिना देश का चलना लगभग असंभव हो गया है। लेकिन यह कर्ज केवल राहत नहीं, एक तरह की ‘गोल्डन चेन’ बन गया है, जो आर्थिक रूप से सहारा तो देता है, लेकिन साथ ही निर्णय लेने की स्वतंत्रता को जकड़ लेता है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान की स्थिति अब कमजोर होती जा रही है। एक तरफ वह कर्जदाताओं की शर्तों को मानने के लिए मजबूर है, दूसरी तरफ जनता का सरकार पर से विश्वास कम होता जा रहा है। कई जानकारों का यह भी कहना है कि जब तक पाकिस्तान अपने राजस्व आधार को नहीं बढ़ाता, टैक्स प्रणाली को व्यापक और पारदर्शी नहीं बनाता, और आत्मनिर्भर विकास की नीति नहीं अपनाता, तब तक उसे बार-बार इसी तरह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सामने झुकना पड़ेगा।
इस समय IMF की भूमिका पाकिस्तान की आंतरिक आर्थिक नीति निर्धारण में निर्णायक बन चुकी है। केवल बजट ही नहीं, बल्कि विकास योजनाएं, ऊर्जा नीति, टैक्स सुधार और सामाजिक योजनाएं भी अब IMF की ‘सिफारिशों’ के अनुसार तैयार होती हैं।
यह पूरी स्थिति पाकिस्तान के लिए एक बड़े आर्थिक और राजनीतिक संकट का संकेत है। एक ऐसा संकट, जिसमें राहत तो मिल रही है, लेकिन नियंत्रण की कीमत पर।