
दिल्ली में प्रियंका गांधी से मिले प्रशांत किशोर? क्या है पूरा सच।
हाल ही में राष्ट्रीय राजनीति में एक चर्चा फिर तेज़ हो गई है: प्रशांत किशोर (Prashant Kishor), जो अब जन सुराज पार्टी के नेता हैं, उनके और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच एक अहम मुलाकात हुई है। दिल्ली में हुई इस बैठक को राजनीतिक हलकों में खासा महत्व दिया जा रहा है, खासकर तब जब प्रशांत किशोर और कांग्रेस के रिश्ते बीते कुछ वर्षों में ठंडे पड़े रहे हैं।
यह मुलाकात सिर्फ सोशल मीटिंग नहीं थी, बल्कि कई पॉइंट्स के कारण चर्चा का विषय बनी हुई है। इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएँगे कि प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी की यह बैठक क्यों मायने रखती है, इस बैठक का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य क्या है, और इसके पीछे की सच्चाई क्या हो सकती है।
क्या हुआ दिल्ली में — प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी की मुलाकात का असली सच
कुछ दिनों पहले, दिल्ली में प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी के बीच मुलाकात हुई, जो करीब 2 घंटे तक चली। यह बैठक गुपचुप ढंग से ही आयोजित हुई थी, लेकिन बाद में मीडिया में इसकी खबर फैल गई।
राजनीतिक रिपोर्टों के मुताबिक, बैठक का मुख्य एजेंडा राष्ट्रीय राजनीति की रणनीति, आगामी सहयोग की संभावनाएं और हालिया चुनावों के नतीजों पर विचार-विमर्श था। प्रशांत किशोर ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की सहभागिता की समीक्षा की है और कांग्रेस अपनी राजनीतिक स्थिति को नया रूप देने पर विचार कर रही है।
प्रियंका गांधी ने किसी भी स्पष्ट बयान से इनकार किया, पर बैठक के बाद राजनीतिक समीकरणों पर चर्चा जोरों पर है। कुछ विश्लेषक इसे दोनों पक्षों के बीच संवाद का नया अध्याय मान रहे हैं।
कुल मिलाकर, यह मुलाकात एक शुरुआती बातचीत के रूप में हुई, जिसमें भविष्य की रणनीति पर विचार हुआ — न कि किसी तत्काल निर्णय या घोषणा के साथ।
प्रशांत किशोर और कांग्रेस — पीछे क्या है इतिहास और क्या बदल सकता है?
प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच रिश्ता नया नहीं है। 2021-22 की अवधि में, जब किशोर कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकार के रूप में जुड़े थे, तब उन्हें पार्टी में नेता के रूप में शामिल होने का विकल्प भी दिया गया था, पर कुछ रणनीतिक मतभेदों के कारण वह उस प्रस्ताव तक नहीं पहुँचे।
बाद में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस से दूरी बना ली और अपनी खुद की जन सुराज पार्टी की स्थापना की। पार्टी के ज़रिए उन्होंने बिहार सहित कई जगह चुनावी लड़ाइयों में भाग लिया और अपनी अलग पहचान बनाई। हालांकि उनके और कांग्रेस के बीच संवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था।
दिल्ली में हुई वर्तमान बैठक इस बात का संकेत है कि दोनों पक्ष बातचीत के लिए तैयार हैं और पुरानी दूरी को समझने तथा समीकरणों को दोबारा परखने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति तब और गंभीर मानी जा रही है जब देश की राजनीतिक परिस्थिति तेजी से बदल रही है और विपक्षी ताकतों को नया स्वरूप देने की मांग बढ़ रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार प्रशांत किशोर सिर्फ सलाह देने वाले रणनीतिकार नहीं बल्कि गठबंधन या सहयोग के संभावित साझेदार के रूप में देखे जा सकते हैं। इससे कांग्रेस को जमीन पर मजबूती मिल सकती है।
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