
विजय शाह के बयान से बढ़ा विवाद: लाड़ली बहनों के लिए धमकी या योजना की रक्षा?
विजय शाह विवादित बयान – लाड़ली बहनों को सम्मान कार्यक्रम में शामिल होने की शर्त
मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह के एक बयान ने प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है और महिलाओं के अधिकारों तथा सरकारी योजनाओं के इस्तेमाल पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। रतलाम में आयोजित एक जिला विकास सलाहकार समिति की बैठक के दौरान मंत्री विजय शाह ने लाड़ली बहना योजना की लाभार्थी महिलाओं को मुख्यमंत्री मोहन यादव के सम्मान कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि जो महिलाएँ आयोजन में शामिल नहीं होंगी, उनके लिए योजना के तहत मिलने वाली सहायता की जांच “पेंडिंग” रखी जाएगी या उनकी मदद रोक दी जा सकती है। इस बयान को कई राजनीतिक दलों ने आलोचना की दृष्टि से देखा है और उन्होंने इसे महिलाओं के प्रति धमकी तथा अपमानजनक बताया है।
इस बयान में कहा गया कि लाड़ली बहना योजना के तहत प्रत्येक महिला को प्रति माह सहायता राशि दी जा रही है और सरकार करोड़ों रुपये इन महिलाओं को दे रही है। ऐसे में कम से कम एक कार्यक्रम में शामिल होकर मुख्यमंत्री को सम्मान देना बनता है, अन्यथा उनके लाभार्थी स्थिति के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इस तरह की शर्त बताते हुए विजय शाह का बयान सोशल मीडिया और मीडिया रिपोर्टों में वायरल हुआ और राजनीतिक प्रतिक्रिया को भी तेज कर दिया।
कांग्रेस का तीखा हमला और इस्तीफे की मांग
वहीं, इस बयान पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और राज्य सरकार से विजय शाह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि यह बयान न केवल महिलाओं का अपमान है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं के आत्मसम्मान के खिलाफ भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और उसके मंत्री महिलाओं के प्रति असंवेदनशील मानसिकता रखते हैं, पहले कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित टिप्पणी और अब प्रदेश की महिलाओं को धमकी देना, इस बात का प्रमाण है।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि लाड़ली बहना योजना को महिलाओं की स्वतंत्र आर्थिक सहायता और सशक्तिकरण के उद्देश्य से शुरू किया गया था, लेकिन अब इसे राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर भाजपा में थोड़ी भी “शर्म और नैतिकता” रहती है तो उन्हें तत्काल विजय शाह को मंत्री पद से बर्खास्त करना चाहिए और उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। इससे पहले कर्नल सोफिया पर विवादित टिप्पणी को लेकर भी विजय शाह सुर्खियों में रहे हैं और उस विवाद ने भी व्यापक राजनीतिक असंतोष पैदा किया था।
राज्य में विपक्षी दलों ने सड़कों पर भी प्रदर्शन किया और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को लेकर सरकार की नीति पर सवाल उठाए। कांग्रेस ने इसे महिलाओं के अधिकार और योजना की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम बताया और कहा कि महिलाओं को धमकी के आधार पर सम्मान कार्यक्रमों में शामिल करने जैसा कोई कानून या सरकारी नीति नहीं होनी चाहिए।
विजय शाह की सफाई और राजनीतिक प्रतिक्रिया
बताया जा रहा है कि विवाद फैलने के बाद विजय शाह ने अपने बयान का बचाव किया है और कहा कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी को धमकाना नहीं था बल्कि योजना की नियम दर नियम समीक्षा और केवल योग्य लाभार्थियों को सहायता देना था।
शाह ने यह भी कहा कि कुछ “अयोग्य” लाभार्थियों के मामले सामने आए हैं, जिनके मामले को जांच कर पक्का किया जाए ताकि केवल सच्चे लाभार्थियों को ही लाभ मिल सके। ऐसा उनका कहना था कि उनका बयान महिलाओं के खिलाफ नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि योजना के उचित क्रियान्वयन के लिए था।
हालांकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेताओं ने इस सफाई को पर्याप्त नहीं माना और उन्होंने कहा कि भाषाई तरीके से बयान पेश करना उनके बयान की गंभीरता को नहीं बदलता। पूर्व मंत्री पी.सी. शर्मा ने कहा कि इस तरह के बयान महिलाओं के आत्मसम्मान के खिलाफ हैं और यह लाड़ली बहना योजना को राजनीतिक प्रचार का जरिया बनाते हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को सरकारी सहायता के बदले सम्मान देना अनिवार्य नहीं बताया जा सकता।
पूर्व विवाद और आलोचना का इतिहास
यह कोई पहली बार नहीं है जब विजय शाह विवादों में रहे हों। जुलाई 2025 में उन्होंने भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित टिप्पणी की थी, जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा कड़ी फटकार भी सुनाई गई थी। उस टिप्पणी को भी विपक्षी दलों ने गंभीर रूप से लिया था और महिलाओं तथा देश की सेनाओं के प्रति अपमानजनक बताया था। इस पूर्व विवाद ने विजय शाह की सार्वजनिक छवि पर और अधिक प्रश्न खड़े कर दिए थे।
ये दोनों घटनाएं — कर्नल सोफिया पर टिप्पणी और अब लाड़ली बहनों के बयान — यह दर्शाती हैं कि विजय शाह की राजनीतिक शैली और भाषणों को लेकर लगातार आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने इसे महिलाओं के प्रति अनादर तथा सत्तारूढ़ दल के भीतर असंवेदनशील सोच का उदाहरण बताया है, जबकि समर्थक इसे योजना के उचित कार्यान्वयन और जांच प्रक्रिया के लिए जरूरी कदम बताते हैं।
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