‘बालिग हैं, फैसला खुद ले सकते हैं’: SC ने हिंदू लड़की से शादी पर जेल में बंद मुस्लिम युवक को दी जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई है, जब उसने एक मुस्लिम युवक और हिंदू युवती के विवाह पर आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि बालिगों को अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है, और राज्य को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता अमान सिद्दीकी उर्फ अमन चौधरी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें राहत दी। अमान को उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट, 2018 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत धार्मिक पहचान छुपाकर शादी करने के आरोप में छह महीने से जेल में रखा गया था।


पीठ ने अपने आदेश में कहा, "दोनों युवक-युवती बालिग हैं और अपनी पसंद से निर्णय लेने में सक्षम हैं। इसके अलावा, उनकी शादी पर परिवारों की भी सहमति थी। ऐसे में राज्य सरकार को उनके साथ रहने पर आपत्ति जताने का कोई अधिकार नहीं बनता।" कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस दंपति के साथ रहने के अधिकार को कोई आपराधिक कार्यवाही बाधित नहीं कर सकती।

सिद्दीकी के वकील ने कोर्ट को बताया कि यह विवाह दोनों परिवारों की सहमति से हुआ था और एक अरेंज मैरिज थी। लेकिन विवाह के कुछ समय बाद कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने आपत्ति जताई और पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी। वकील ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने विवाह के तुरंत बाद एक शपथपत्र भी दाखिल किया, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने अपनी पत्नी पर धर्म बदलने का कोई दबाव नहीं डाला, और दोनों अपने-अपने धर्म का पालन स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं।

वकील ने आश्वासन दिया कि यदि याचिकाकर्ता को जमानत दी जाती है तो दंपति समाज से अलग होकर शांतिपूर्वक जीवन बिताएंगे। सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि कोई ठोस आपराधिक मंशा नहीं है, अमान सिद्दीकी को तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

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