
‘न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग’: सरेंडर टालने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हत्या के दोषी विनोद उर्फ 'गंजा' को कड़ी फटकार लगाई, जिसने जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण (सरेंडर) के लिए तीन सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा था। कोर्ट ने इसे अनुचित बताते हुए उसकी याचिका पर तीखी टिप्पणी की। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि दोषी की फरलो (छुट्टी) बढ़ाने की मांग को पहले ही जस्टिस ए.एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ 14 मई को खारिज कर चुकी है। इसके बावजूद उसने फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “आपकी हिम्मत कैसे हुई यह याचिका दाखिल करने की? जस्टिस ओका की पीठ इसे पहले ही खारिज कर चुकी है, और अब आप इसे छुट्टी के दौरान फिर से दाखिल कर रहे हैं।”
दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल तीन सप्ताह का समय मांग रहा है, ताकि वह 10 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी समयपूर्व रिहाई याचिका पर आने वाले फैसले तक सरेंडर से बच सके। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार याचिका खारिज हो चुकी है, और दोबारा वही मांग करना अनुचित है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि वह ऐसे मामलों से सख्ती से निपटेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को आज ही जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करना होगा। कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति भी नहीं दी और कहा कि यह याचिका न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसने राज्य की नीति के अनुसार समयपूर्व रिहाई की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि उसने 14 वर्षों से अधिक की वास्तविक सजा और कुल 16 वर्षों की सजा (छूट सहित) पूरी कर ली है। हाई कोर्ट ने 5 मई को मामले पर नोटिस जारी किया था, लेकिन 20 मई को सरेंडर से छूट की मांग को खारिज कर दिया था। जेल अधिकारियों ने उसे 28 अप्रैल को फरलो पर छोड़ा था।
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