
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा-‘निजी विवाद में हस्तक्षेप क्यों?’, बांके बिहारी मंदिर मामले में जताई नाराजगी
वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर से जुड़े एक निजी विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराज़गी जताई है। मंगलवार, 27 मई 2025 को न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य सरकार किसी भी हाल में निजी मुकदमेबाजी को 'हाईजैक' नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह देवेंद्र नाथ गोस्वामी द्वारा दाखिल की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में 15 मई को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी। उस आदेश के तहत उत्तर प्रदेश सरकार को बांके बिहारी मंदिर के पास पांच एकड़ क्षेत्र में कॉरिडोर निर्माण के लिए मंदिर के फंड का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
देवेंद्र नाथ गोस्वामी, जो मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज होने का दावा करते हैं, ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उनके पक्ष को सुने बिना पारित किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि यह मामला मूल रूप से दो पक्षों के बीच का निजी विवाद था, जिसमें यूपी सरकार कोई पक्ष नहीं थी, फिर भी उसने बीच में हस्तक्षेप किया और मंदिर के 300 करोड़ रुपये से अधिक के चढ़ावे के उपयोग की अनुमति प्राप्त कर ली।
सिब्बल ने कोर्ट से कहा, "यह मंदिर का फंड है, जिसे भक्तों ने आस्था के साथ दान किया है। इसमें राज्य सरकार को कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि बिना पक्ष बनाए सरकार को इतनी बड़ी राशि के उपयोग की अनुमति कैसे दी जा सकती है।
सुनवाई के दौरान जब पीठ ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि क्या वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले में पक्ष थे, तो जवाब नहीं में मिला। इस पर जस्टिस नागरत्ना ने नाराज़गी जताते हुए कहा, "राज्य सरकार किस अधिकार से निजी विवाद में हस्तक्षेप कर रही है? अगर राज्य इस तरह के मामलों में दखल देने लगे तो यह कानून के शासन को गंभीर क्षति पहुंचाएगा। मुकदमेबाजी को हाईजैक करना स्वीकार्य नहीं है।"
हालांकि, राज्य सरकार की ओर से यह जानकारी दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक अध्यादेश लाया गया है, जिसके तहत मंदिर से संबंधित प्रबंधन अब एक ट्रस्ट को सौंपा गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वह स्वयं मंदिर के फंड का उपयोग नहीं करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह पूछा कि क्या वे फैसले की समीक्षा चाहते हैं। इस पर कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता केवल इस बात की मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी उस आदेश में पक्षकार बनाया जाए। हालांकि, पीठ ने कहा कि आदेश में संशोधन करना फैसले की समीक्षा के समान होगा, जो इस स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।
यह मामला अब न केवल धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा है बल्कि न्याय प्रक्रिया की मर्यादा और राज्य की सीमाओं पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर रहा है।
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