
'इतनी देरी क्यों?' वक्फ एक्ट की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और याचिकाकर्ता से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वक्फ अधिनियम, 1995 की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता से देरी पर सवाल उठाते हुए पूछा कि इतने वर्षों बाद अब यह कानून को क्यों चुनौती दी जा रही है? CJI बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा, "आप 1995 के कानून को 2025 में चुनौती दे रहे हैं। यह याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं, यह गंभीर सवाल है।"
यह याचिका लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय ने दाखिल की है, जिसमें वक्फ अधिनियम 1995 के विभिन्न प्रावधानों को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द करने की मांग की गई है। उपाध्याय की दलील है कि यह कानून अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ भेदभाव करता है, क्योंकि उनके पास इस तरह की संपत्तियों के प्रशासन के लिए कोई समर्पित कानून नहीं है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि वक्फ बोर्ड को सरकारी और गैर-मुस्लिमों की संपत्ति पर दावा करने की शक्ति मिलती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत वकील ने दलील दी कि उन्होंने न केवल 1995 के मूल अधिनियम, बल्कि 2013 के संशोधन को भी चुनौती दी है। इस पर पीठ ने टिप्पणी, "यह संशोधन भी 12 साल पुराना है। इतनी देरी के बावजूद आप अब कोर्ट आ रहे हैं?"
वकील ने पलटवार करते हुए कहा कि कोर्ट Places of Worship Act, 1991 पर भी अब सुनवाई कर रहा है, जिससे उनकी याचिका की वैधता बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका को पारूल खेडा और हरिशंकर जैन द्वारा दाखिल पूर्व याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है, जिनमें भी वक्फ अधिनियम को चुनौती दी गई थी।
केंद्र की ओर से पेश हुईं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को सूचित किया कि उन्हें इस याचिका को पहले से लंबित मामलों के साथ जोड़ने पर कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अभी तक कोर्ट ने 1995 के अधिनियम और उसके बाद हुए संशोधनों पर एक साथ सुनवाई की अनुमति नहीं दी है।
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