कुरान या बाइबिल की निंदा करने वाला धर्म में नहीं रह सकता, तो मनुस्मृति पर क्यों छूट?

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हालिया टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति मनुस्मृति, जिसे हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, की आलोचना करता है, तो वह स्वयं को हिंदू कैसे कह सकता है।


समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में शंकराचार्य ने कहा, "अगर कोई कहे कि वह मुसलमान है, लेकिन कुरान की निंदा करता है, या कोई कहे कि वह ईसाई है, लेकिन बाइबिल को गलत ठहराए, तो क्या वह सच में उस धर्म का अनुयायी कहलाने लायक रहेगा? ठीक उसी तरह, मनुस्मृति हमारे लिए एक धर्मग्रंथ है। अगर कोई इसे नकारता है या उसका अपमान करता है, तो वह अपने आप को हिंदू कैसे कह सकता है?" उन्होंने आगे जोड़ा कि किसी की धार्मिक पहचान केवल नाम या जन्म से नहीं, बल्कि उसके विचार और आचरण से तय होती है। "जब आप भीतर से हिंदू नहीं हैं, तो बाहर से कैसे हिंदू हो सकते हैं? केवल कह देने से कोई हिंदू नहीं हो जाता।"

राहुल गांधी ने संसद में संविधान लागू होने के 75 साल पूरे होने पर सरकार पर निशाना साधते हुए मनुस्मृति और संविधान के बीच फर्क को रेखांकित किया था। उन्होंने हिंदुत्व विचारक वी.डी. सावरकर का हवाला देते हुए कहा था, "मनुस्मृति वह धर्मग्रंथ है, जो हमारे ‘हिंदू राष्ट्र’ के लिए वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है। इसने सदियों से हमारे राष्ट्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा को दिशा दी है।" 


राहुल ने आरोप लगाया कि सावरकर का यह मानना था कि भारत का संविधान विदेशी अवधारणाओं पर आधारित है और उसकी जगह मनुस्मृति को रखा जाना चाहिए। राहुल गांधी के इस बयान पर कई धार्मिक नेताओं ने नाराज़गी जताई है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का बयान उसी श्रृंखला की एक तीखी प्रतिक्रिया मानी जा रही है, जिसमें हिंदू धर्म के मूल ग्रंथों के सम्मान और पहचान के सवाल को केंद्र में रखा गया है।

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