Delhi: क्लासरूम घोटाले की जांच तेज, ED ने 37 ठिकानों पर की छापेमारी, 2000 करोड़ की अनियमितता का आरोप

राजधानी दिल्ली में क्लासरूम निर्माण घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को बड़ी कार्रवाई की। मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के तहत ईडी ने 37 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। यह कथित घोटाला आम आदमी पार्टी (आप) की पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान हुआ बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, यह कार्रवाई दिल्ली भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की एफआईआर के आधार पर की गई। इस पर संज्ञान लेते हुए ईडी ने पीएमएलए (PMLA) के तहत मामला दर्ज किया और उसके बाद यह छापेमारी की गई। ईडी की जांच के दायरे में ठेकेदारों और निजी संस्थाओं के दर्जनों ठिकाने शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि ईडी ने 30 अप्रैल को दर्ज अपनी एफआईआर में पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज किया था। एजेंसी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में 12,000 से अधिक कक्षाओं के निर्माण में लगभग 2,000 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ियां की गईं।


बताया गया है कि मनीष सिसोदिया ने सरकारी स्कूलों के कायाकल्प के लिए 193 स्कूलों में 2,400 से अधिक कक्षाएं बनवाने की योजना शुरू की थी, जिसकी ज़िम्मेदारी लोक निर्माण विभाग (PWD) को सौंपी गई थी। लेकिन केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की 17 फरवरी 2020 की रिपोर्ट ने इन निर्माण कार्यों में गहरी अनियमितताओं को उजागर किया।

CVC की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोजेक्ट की लागत में 500 करोड़ रुपये की वृद्धि बिना किसी निविदा प्रक्रिया के कर दी गई थी। कक्षा निर्माण की लागत में 90% तक की वृद्धि दिखाई गई, जबकि गुणवत्ता बेहद खराब रही। निर्माण प्रक्रिया में GFR (General Financial Rules), CPWD वर्क्स मैनुअल और अन्य मानकों का खुला उल्लंघन किया गया। जांच में एक चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि 193 स्कूलों में सिर्फ 160 शौचालय बनाए जाने थे, लेकिन 37 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करके 1214 शौचालय बनाए गए। इन शौचालयों को सरकारी रिकॉर्ड में ‘कक्षाएं’ बताया गया। नतीजतन, 141 स्कूलों में सिर्फ 4,027 कक्षाओं का ही निर्माण हो सका।

सबसे गंभीर आरोप यह है कि आम आदमी पार्टी सरकार ने सीवीसी की रिपोर्ट को ढाई साल तक दबाए रखा। रिपोर्ट मिलने के बाद न तो जवाब दिया गया और न ही किसी तरह की कार्रवाई की गई। आखिरकार अगस्त 2022 में दिल्ली के उपराज्यपाल ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि इस देरी की जांच कर रिपोर्ट पेश की जाए।

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