
कपिल सिब्बल का सवाल: जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट सरकार को भेजना क्यों जरूरी था?
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो दो पूर्व महाभियोग मामलों में अहम भूमिका निभा चुके हैं, ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रस्तावित महाभियोग प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यह मामला न केवल पूर्व के मामलों से भिन्न है, बल्कि इसमें अभी तक कोई स्पष्ट तथ्य सामने नहीं आया है, जो इतनी गंभीर कार्रवाई को उचित ठहरा सके।
सिब्बल ने कहा कि न तो यह स्पष्ट है कि कथित नकदी कितनी थी, न यह कि किसने उसे रखा। मीडिया की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, “मीडिया कह रहा है कि वहां 15 करोड़ रुपये थे, लेकिन क्या कोई बता सकता है कि उन्हें किसने गिना?”
उन्होंने जोर देकर कहा कि घटना स्थल पर फायर ब्रिगेड, दिल्ली पुलिस और अन्य अधिकारियों में से किसी ने भी नकदी की पुष्टि नहीं की। न कोई जब्ती रिपोर्ट, न कोई एफआईआर। सिब्बल ने कहा, "अगर वास्तव में नकदी थी, तो पुलिस ने उसे जब्त क्यों नहीं किया? कम से कम एक नोट का सीरियल नंबर लेकर उसकी उत्पत्ति तो पता की जा सकती थी।
सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमेटी की जांच पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “कमेटी ने यह जांच ही नहीं की कि दिल्ली पुलिस और अन्य एजेंसियों ने क्यों अपना कर्तव्य नहीं निभाया। उन्होंने केवल वीडियो के आधार पर यह मान लिया कि नकदी वहां थी, लेकिन यह नहीं देखा कि किसने रखी और क्यों।”
उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि रिपोर्ट के निष्कर्ष न्यायिक प्रक्रिया की मूल भावना के अनुरूप नहीं हैं। सिब्बल ने पूछा, “कोई सुनवाई नहीं, कोई प्रतिवाद नहीं, सिर्फ एकतरफा निष्कर्ष… क्या यही प्रक्रिया है?
सिब्बल ने बताया कि जज वर्मा की बेटी ने आग लगने की आवाज सुनकर मौके पर पहुंचने की कोशिश की, लेकिन कोई सुरक्षा या पुलिस कर्मी मदद को नहीं आया। उन्होंने कहा, “बेटी को मौके से दूर कर दिया गया था, वह देख भी नहीं सकती थी कि अंदर क्या था।" उन्होंने कहा कि पुलिस, सीआरपीएफ, और दमकल विभाग – किसी ने भी परिवार को नकदी के बारे में नहीं बताया। “अगर वहां नकदी थी, तो क्या यह पुलिस का दायित्व नहीं था कि वह उसे जब्त करती? उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया?”
सिब्बल ने दो टूक कहा, “जस्टिस वर्मा के खिलाफ इन-हाउस इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट को ही महाभियोग लाने का आधार बनाना संविधानिक रूप से सही नहीं है। सरकार के पास रिपोर्ट भेजना भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है – क्या यह रिपोर्ट राष्ट्रपति को नहीं भेजी जानी चाहिए थी?”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की गई है, और सुनवाई का अवसर तक नहीं दिया गया।
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