गंभीर अपराध नहीं होने का हवाला देते हुए पूर्व IAS ट्रेनी अधिकारी पूजा खेडकर को SC से मिली ज़मानत
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की पूर्व ट्रेनी अधिकारी पूजा खेडकर को अग्रिम जमानत प्रदान की। खेडकर पर आरोप है कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में धोखाधड़ी की और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तथा दिव्यांगता श्रेणी के तहत आरक्षण का अनुचित लाभ उठाया। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने खेडकर को निर्देश दिया कि वह जांच में पूरा सहयोग करें और संबंधित एजेंसियों को आवश्यक जानकारी मुहैया कराएं।
पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, "उन्होंने कौन सा ऐसा गंभीर अपराध किया है जो जमानत न दी जा सके? वह न तो मादक पदार्थ माफिया हैं, न ही आतंकवादी, और न ही उन्होंने हत्या (धारा 302) जैसा कोई जघन्य अपराध किया है। उनके खिलाफ एनडीपीएस (मादक पदार्थ निषेध कानून) से संबंधित कोई मामला भी नहीं है। जांच के लिए आपकी प्रणाली में कुछ स्पष्टता होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि जांच निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से पूरी हो। उन्होंने पहले ही अपना काफी कुछ खो दिया है, और अब उनके लिए किसी भी नौकरी की संभावना बेहद कम है।"
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह भी कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय को खेडकर को जमानत प्रदान करनी चाहिए। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने इसका कड़ा विरोध किया। पुलिस के वकील ने कहा कि खेडकर जांच में सहयोग नहीं कर रही हैं और उन पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं।
खेडकर पर आरोप है कि उन्होंने 2022 में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के लिए अपने आवेदन में गलत जानकारी दी थी। आरोपों के मुताबिक, उन्होंने ओबीसी और दिव्यांगता श्रेणी का लाभ लेने के लिए झूठे दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। खेडकर ने इन आरोपों को खारिज करते हुए खुद को निर्दोष बताया है।
यूपीएससी ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। आयोग ने खेडकर पर फर्जी पहचान के जरिए सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने का आरोप लगाते हुए आपराधिक मामला दर्ज करवाया। इसके साथ ही दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ विभिन्न अपराधों के तहत प्राथमिकी भी दर्ज की है।
यह मामला सिविल सेवा परीक्षा की पारदर्शिता और आरक्षण प्रणाली के दुरुपयोग के आरोपों के कारण चर्चा में है। खेडकर का कहना है कि वह निर्दोष हैं और उनके खिलाफ आरोपों का उद्देश्य उनके करियर को बर्बाद करना है। वहीं, दिल्ली पुलिस और यूपीएससी का मानना है कि इस मामले की गहन जांच आवश्यक है ताकि भविष्य में इस तरह की धोखाधड़ी की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।
मामले को देखते हुए यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के साथ खेडकर को जांच में पूरी तरह से सहयोग करने का सख्त निर्देश दिया है।