जस्टिस बीआर गवई बने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक गरिमामय समारोह में पद की शपथ दिलाई। जस्टिस गवई 23 नवंबर, 2025 तक इस पद पर बने रहेंगे। महाराष्ट्र के अमरावती निवासी जस्टिस गवई ने 16 मार्च, 1985 को वकालत की शुरुआत की। अपने शुरुआती वर्षों में उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व एडवोकेट जनरल और न्यायाधीश राजा एस. भोंसले के साथ 1987 तक कार्य किया। इसके बाद उन्होंने नागपुर खंडपीठ में संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों में विशेष रूप से प्रैक्टिस की।


इस दौरान वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए वकील के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक वे नागपुर खंडपीठ में असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लीडर और एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रहे। इसके बाद 17 जनवरी 2000 को उन्हें सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 14 नवंबर, 2003 को जस्टिस गवई को बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 12 नवंबर, 2005 को वे स्थायी न्यायाधीश बने। 

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी खंडपीठों में कार्य किया। 24 मई, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।  सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। जनवरी 2023 में वे उस संविधान पीठ में शामिल थे, जिसने केंद्र सरकार के नोटबंदी (₹500 और ₹1000 के नोटों) के फैसले को वैध ठहराया था। दिसंबर 2023 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को भी संविधान पीठ ने बरकरार रखा था, जिसमें जस्टिस गवई शामिल थे। इसके अतिरिक्त, वे उस पांच-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा भी थे, जिसने राजनीतिक चंदे के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था। 

जस्टिस गवई ने अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) में उप-वर्गीकरण को समर्थन देते हुए ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया था। उन्होंने तर्क दिया कि समानता के सिद्धांत को प्रभावी बनाने के लिए समुदायों के भीतर भी सामाजिक और आर्थिक विभाजन को समझना आवश्यक है। नवंबर 2024 में जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अपराधियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की प्रवृत्ति की आलोचना की थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि कानून के शासन का पालन किए बिना की गई ऐसी कार्रवाई असंवैधानिक है।

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