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“डॉक्टर्स’ टेरर वेब: कैसे मेडिकल कैंपस बने भर्ती हब और स्लीपर सेल्स छिपा रहे”
12 Nov 2025
डॉक्टर्स’ टेरर वेब और कैंपस का बदलता मिशन
हाल ही में खुलासा हुआ है कि मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल कैंपस सिर्फ शिक्षा-स्वास्थ्य के केंद्र नहीं रहे, बल्कि भर्ती का हब बन चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस ‘डॉक्टर्स’ टेरर वेब’ में शामिल डॉक्टरों एवं मेडिकल छात्र-शिक्षकों ने “स्लीपर सेल्स” का काम किया है — यानी वे लंबे समय तक सामान्य पेशेवर जीवन जीते रहे और किसी घटना के वक्त सक्रिय हो गए।
उदाहरण के लिए, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर ने अस्पताल की लॉकर में एक AK-47 पाई गई है।
इस तरह की घटनाएँ यह साफ करती हैं कि मेडिकल पेशा एवं शिक्षा-कंपस में कहीं बदलाव हो रहा है। उन समूहों ने शांत तरीके से कैंपस में घुसकर — शिक्षक, छात्र, चिकित्सक बनकर — भर्ती, ट्रेनिंग, लॉजिस्टिक्स और सक्रियता की जिम्मेदारी ली।
कैंपस में ये गतिविधियाँ कैसे हुईं?
- चिकित्सक-मेडिकल छात्र अपने सामाजिक प्रतिष्ठा का लाभ उठाते हुए भर्ती आकर्षित करते थे।
- ‘स्लीपर सेल’ का मॉडल रखा गया — लंबे समय तक प्रतीक्षा-स्थिति में रहना, घटना के लिए तैयारी करना।
- डिजिटल उपकरण, गुप्त चैट-ग्रुप्स, तालमेल-नेटवर्क का इस्तेमाल।
इस तरह से “डॉक्टर्स’ टेरर वेब” ने पहले सोची गई आतंक नेटवर्क की परिकल्पना को बदल दिया है — जहाँ केवल मीलिटेंट ग्राउंड वर्कर्स नहीं बल्कि डॉक्टर-पेशेवर भी सक्रिय हो गए हैं।
डॉक्टरों की भूमिका और “दिल्ली कार ब्लास्ट”-“रेड फोर्ट ब्लास्ट” से लिंक
इस पूरे नेटवर्क का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है कि यह सीधे जुड़ा है Red Fort blast \ Delhi car blast जैसे घटनाओं से। खबरें बताती हैं कि एक “श्वेत-कॉलर” मॉड्यूल जिसमें डॉक्टर, मौलाना और व्यवसायी शामिल थे, ने दिल्ली के पास एक कार विस्फोट को अंजाम देने की तैयारी की थी।
विशेष रूप से:
- एक डॉक्टर को कार ड्राइवर के रूप में देखा गया, जिसने उस कार को चलाया जिसमें विस्फोट हुआ।
- इस मॉड्यूल में 2,900 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक सामग्री बरामद की गई।
- नेटवर्क का स्रोत जम्मू-कश्मीर, हरियाणा (फरीदाबाद) व उत्तर-प्रदेश (सहारनपुर) पाया गया।
यह स्पष्ट संकेत देता है कि “डॉक्टर्स’ टेरर वेब” सिर्फ भर्ती नेटवर्क नहीं, बल्कि सक्रिय आतंकी अभियान के हिस्से के रूप में विकसित हुआ था — विशेष रूप से “दिल्ली बॉम्ब ब्लास्ट” व “दिल्ली कार ब्लास्ट” जैसे लक्ष्यों के संदर्भ में।
इस प्रकार चिकित्सा-पेशेवरों द्वारा संचालित यह वेब उन हमलों का भी आधार बन गया जिनका लक्ष्य राजधानी था, जिससे सुरक्षा-चौकीदारी पर नया प्रश्न चिन्ह लगा है।
सुरक्षा-चुनौतियाँ, मिसाल और आगे की राह
“डॉक्टर्स’ टेरर वेब” ने एक नई सुरक्षा-चुनौती प्रस्तुत की है। निचे कुछ मुख्य बिंदु दिए जा रहे हैं:
चुनौतियाँ:
- शिक्षा-प्रोफेशनल सर्कल्स में भर्ती होना – डॉक्टर, शिक्षक, छात्र — जो आम-नज़र में संदिग्ध नहीं दिखते।
- मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल का सामाजिक भरोसा आतंक मॉड्यूल को आवरण देता है।
- “रेड फोर्ट ब्लास्ट” एवं “दिल्ली कार ब्लास्ट” जैसे बड़े हमलों से जुड़ाव अस्पष्ट लेकिन गंभीर।
- सूचनाओं व चेक-पॉइंट्स की कमी: पेशेवरों की अंदरूनी नेटवर्किंग मुश्किल से पकड़ी जाती है।
- आतंक-फंडिंग, ऑनलाइन संचार, अंतर-राज्यीय लॉजिस्टिक्स — ये सब इस वेब का हिस्सा हैं।
मिसालें:
- जम्मू-कश्मीर में एक डॉक्टर के लॉकर से AK-47 बरामद।
- उत्तर-प्रदेश के सहारनपुर-फ़रीदाबाद में भर्ती-नीति द्वारा स्लीपर सेल का खुलासा।
- ‘गुप्त चैनल’ व श्वेत-कॉलर मॉड्यूल द्वारा संचालित नेटवर्क का पर्दाफाश।
आगे की राह:
- मेडिकल एवं प्रोफेशनल संस्थानों में सुरक्षा-सक्रियता बढ़ानी होगी — खासकर भर्ती-सक्रियता, छात्र-लेखण-प्रवृत्ति व सोशल मीडिया गतिविधियों की मॉनिटरिंग।
- कैम्पस व हॉस्पिटल में वीडियो-सर्विलांस, फंडिंग-आडिट, बैकग्राउंड चेक जैसे उपाय जरूरी।
- राज्य-एजेंसियों व केंद्र-एजेंसियों को बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा ताकि “दिल्ली बॉम्ब ब्लास्ट”, “दिल्ली कार ब्लास्ट” जैसे हमलों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
- आम नागरिक-सतर्कता भी बढ़ानी होगी — किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत रिपोर्टिंग।
- चिकित्सा-सामाजिक संस्था व प्रोफेशनल बार इन मुद्दों पर विशेष चेतना अभियान चलाएं कि ‘पेशेवर होना आतंक से सुरक्षित नहीं’।