Article

जनसंख्या नियंत्रण कानून के पीछे छिपी नफरती मंशा! लागू हुआ कानून तो बढ़ेगी कन्या भ्रूण हत्या

 28 Jun 2021

देश इस वक्त एक से बढ़कर एक परेशानियां झेल रहा है। किसान-मजदूर आर्थिक तंगी का शिकार हो गए। बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गई। महंगाई इस स्तर पर पहुंच गई है कि देश के भीतर एक बड़े वर्ग में खान-पान और रहन सहन का तरीका बदल गया। या यूं कि कहें कि उन्होंने खुद को समेट लिया। इन सबके बीच भी सियासत उन्हें किसी तरह से छूट देने के मूड में नहीं है। धार्मिक नफरत की आंच में सियासी रोटियां सेकनें की तैयारी है। जनसंख्या नियंत्रण बिल का मामला कुछ ऐसा ही है। 

नफरती मंशा

दुनिया के तमाम देशों की सियासत शिक्षा-स्वास्थ्य-बेरोजगारी और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर होती है लेकिन भारत की राजनीति का मूल धर्म-दंगा और नफरत है। जब भी चुुुनाव होते हैं ऐसे मुद्दों को हवा दी जाती है जो धार्मिक नफरत को बढ़ावा देते हो। जनसंख्या नियंत्रण कानून भी वही है, बहुसंख्यक वर्ग के एक बड़े हिस्से के दिमाग में ये बात बस गई है कि देश की जनसंख्या मुसलमानों के कारण बढ़ रही है। ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। लेकिन ये सच नहीं है, कानून के पीछे की मंशा में नफरत छिपी है। 

आंकड़ो से समझिए। 2001 में मुस्लिमों में प्रजनन दर 4.1 बच्चे प्रति महिला थी। 2011 में ये आंकड़ा तेजी से बदला और 2.7 पर आ गया। दूसरी तरफ 2001 में हिन्दुओं में प्रजनन दर 3.1 थी जो 2011 में घटकर 2.1 हो गई। घटने की तुलना करेंगे तो पता चलेगा कि मुस्लिमों में प्रजनन दर हिन्दुओं के मुकाबले तेजी से घटी। 2021 में प्रस्तावित जनगणना का रिजल्ट जब सामने आएगा तो दोनो ही वर्ग 'हम दो हमारे दो' के स्तर पर आ चुके होंगे। 

अधिक बच्चा पैदा करने के कारण

अधिक बच्चे पैदा करने का सीधा संबंध गरीबी और अशिक्षा से है। पहले के लोग 'मैन पॉवर' पर फोकस करते थे। उन्हें लगता था कि 'जितने हाथ उतनी अधिक कमाई'। ये धारणा किसी एक धर्म में नहीं थी बल्कि सभी धर्मों के लोगों की सोच एक जैसे थी। जैसे जैसे वह शिक्षित हुए उन्हें महसूस हुआ कि पहले वाली धारणा गलत थी। कहने का मतलब साफ है कि कोई भी धर्म न तो लोगों से अपील करता है और न ही ये तय करता है कि आप 10-12 बच्चे पैदा करो, ये सब गरीबी-अशिक्षा और बेरोजगारी से होता है। 

उदाहरण के लिए हम केरल और बिहार को ले सकते हैं। केरल में इस वक्त प्रति विवाहित जोड़ा बच्चे का रेसियो 1.7 है। यहां 99.3 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। बिहार में प्रजनन दर 3.2 है। यहां महिलाओं में निरक्षरता दर 26.8 फीसदी है। इतने साफ आंकड़े होने के बावजूद भी आम लोगों के दिमाग में ये बात नहीं पहुंच पाती। इसकी बड़ी वजह ये भी है कि वाट्सऐप पर फारवर्ड होने वाले फर्जी और तथ्यहीन मैसेज उन्हें तार्किक सोचने ही नहीं देते। 

जहां शिक्षा वहां प्रजनन दर कम

तुर्की, कतर, बहरीन, कुवैत, लेबनान, ईरान, अजर्बेजान, मालदीव, मलेशिया ये सभी मुस्लिम देश हैं लेकिन यहां महिलाओं की साक्षरता बेहतर है यही कारण है कि यहां प्रजनन दर भारत से भी कम है, यहां के लोग बिना किसी पाबंदी के ही हम दो-हमारे दो पर फोकस हैं। यहां अधिक बच्चों को धर्म से नहीं जोड़ा गया बल्कि सरकार ने अपनी जिम्मेदारी समझी और समाज को शिक्षित किया। पर यहां ऐसा नहीं है इसके भी कई कारण हैं। अगर वह शिक्षा पर जोर देंगे तो उनका धार्मिक एजेंडा खतरे में पड़ जाएगा इसलिए वह हमेशा हिन्दू खतरे में हैं का नारा जपते रहते हैं। 

कानून लागू हो गया तो क्या होगा?

पिछले 20 सालों से भारत में चाइल्ड सेक्स रेश्यो घट रहा है। 1000 मेल चाइल्ड पर 919 फीमेल चाइल्ड है। इसका मतलब ये कि बेटे की चाह में लोग बेटियों को भ्रूण में ही हत्या करने लगे। हरियाणा में तो आंकड़ा और भी डरावना है यहां 1000 पुरुषों में महज 879 महिलाएं हैं। यूपी और बिहार में प्रति हजार पुरुषों पर 82 और 88 महिलाएं कम हैं। वहीं दूसरी तरह जहां भी साक्षरता अधिक है उन राज्यों में सेक्स रेश्यो बराबर है। केरल में तो पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा हैं। 

ऐसे हालात में अगर ये कानून लागू होता है तो मुसीबत और बढ़ेगी। हमारा समाज बेटियों पर बेटो को प्राथमिकता देते आया है ऐसे में किसी को पहली संतान के रुप में बेटी हुई तो वह अगली संतान बेटा ही चाहेगा। वह भ्रूण जांच करवाएगा और अगर बेटी होती है तो उसकी हत्या की भी संभावना बढ़ जाती है। तमाम ऐसे भी लोग हैं जो दोनो बच्चे बेटा ही चाहेंगे। वहीं दोनो बेटियां चाहने वाले लोग या तो एकदम कम मिलेंगे या फिर मिलेंगे नहीं। इस कानून से कन्या भ्रूण हत्या बढ़ जाएगी। लावरिश बच्चियों की भी संख्या बढ़ेगी।

चीन को वापस लेना पड़ा कानून

इस कानून के पक्ष में रहने वाले लोग चीन का उदाहरण देते हैं। सही बात है कि चीन ने बढ़ती जनसंख्या से परेशान होकर 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू किया लेकिन वक्त बीतने के साथ वह परेशान हो गया और 2015 में इसे खत्म कर दिया। इस दौरान चीन में सेक्स रेश्यो इस कदर बर्बाद हुआ कि पड़ोसी देश वियतनाम, कम्बोडिया और लाओस से लड़कियां खरीदकर शादी की जाने लगी। यही हालत अपने यहां हरियाणा में है। लोग पैसे देकर लड़कियों से शादी कर रहे हैं। 

क्या करना चाहिए?

सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। हर व्यक्ति तक शिक्षा को पहुंचाना उसका उद्देश्य होना चाहिए। शादी की न्यूनतम उम्र में थोड़ा और इजाफा किया जाना चाहिए।  जेंडर-संवेदनशीलता के प्रयास को युद्ध स्तर पर हों ताकि बेटों की चाह में लोग अधिक बच्चे न पैदा करें। महिलाओं को फैमिली प्लानिंग में अधिक निर्णय-निर्माण स्वतंत्रता मिले ताकि वह बच्चा पैदा करने वाली मशीन न समझी जाएं। सेक्स एजुकेशन को बढ़ावा दिया जाए ताकि लोग एक्सीडेंटर बर्थ के बजाय प्लांड बर्थ को अपनाएं।
 

यह भी पढ़ें - मुख्तार अंसारी की क्राइम हिस्ट्री, परिवार के कहने पर चलता तो नहीं बनता पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन