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गुलनाज को जिंदा जलाने वाले सतीश व चंदन को कौन बचा रहा? घटना पर क्यों चुप हैं BJP के नेता?
18 Nov 2020
आपकी याददाश्त तेज होगी तो आपको याद होगा कि यूपी के उन्नाव में एक लड़की से रेप हुआ था, लड़की को आरोपियों के लिए खिलाफ पैरवी करने रायबरेली जाना था इसलिए वह सुबह 5 बजे ही घर से स्टेशन के लिए निकली। रास्ते में उसे आरोपियों ने मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। लड़की की मौत हो गई। लगा कि आरोपियों को ऐसी सजा दी जाएगी कि ऐसी घटना दोबारा नहीं होगी लेकिन ये सिर्फ एक भ्रम था, जो बिहार के वैशाली की ये घटना देखकर टूट गया।
रसूलपुर हबीब की गुलनाज खातून को जलाकर मार दिया गया. अब न्याय मांगा जा रहा है। गुलनाज से गांव का ही सतीश काफी वक्त से छेड़खानी करता, उससे शादी करने को कहता। गुलनाज खुद के मुस्लिम और उसके हिन्दू होने की बात करती। लेकिन सतीश नहीं माना तो गुलनाज के घरवालों ने उसके घर पर शिकायत की। लेकिन उन्हें क्या पता था कि इस शिकायत के बाद सबकुछ एकदम बदल जाएगा। बेटी दरिंदो का शिकार बन जाएगी। 30 अक्टूबर को सतीश और उसके चचेरे भाई चंदन ने एक अन्य साथी के साथ मिलकर गुलनाज पर केरोसीन यानी मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। गांव वाले पहुंचे और किसी तरह से आग बुझाई और उसे अस्पताल में भर्ती करवाया।
स्थानीय अस्पताल में सुधार नहीं हुआ तो पटना के पीएमसीएच में भर्ती करवाया गया जहां 15 दिनों तक जिंदगी मौत से जूझने के बाद 16 नवंबर को उसकी दर्दनाक मौत हो गई। ध्यान रहे इसी दिन बिहार की सिंहासन पर नीतीश कुमार सातवीं बार विराजमान हुए। ये बात मैं इसलिए बता रहा हूं क्योंकि इस घटना का सीधा संपर्क राज्य की नई सत्ता से है। हुआ ये कि 30 अक्टूबर को जब ये घटना हुई तो पुलिस को तुरंत जानकारी दी गई। पुलिस ने लड़की को अस्पताल में पहुंचाया लेकिन FIR नहीं लिखी। क्यों नहीं लिखी, किसके दबाव में नहीं लिखी ये सारी बातों को आप अपने हिसाब से समझ लीजिए। अब जब FIR नहीं लिखी तो किसी की गिरफ्तारी और कार्रवाई कैसे करते, सो नहीं किया।
एनडीए को दूसरे और तीसरे चरण में ज्यादा सीटें मिली, दूसरे चरण की वोटिंग 3 व तीसरे की 7 नवंबर को थी, अगर 30 अक्टूबर को मामला लिखा जाता, बात मीडिया में आती तो सरकार की किरकिरी होती, सो ऊपर से आदेश आया कि इस मामले को आगे पीछे करके खत्म कर दो। एक बात और यही अगर हिन्दू लड़की होती और मुस्लिम लड़का होता तब तो बवाल हो जाता। पुलिस तुरंत सक्रिय होती, कार्रवाई होती और तो और सत्ता पाने के लिए जनता से वोट भी मांग लिए जाते। लेकिन यहां तो मामला उल्टा था सो उसे दबा दिया गया। अब जब सबकुछ हो गया तो पुलिस कह रही है हमने स्पेशल टीम बनाई है। लगातार छापेमारी की जा रही है।
आप माने या ना माने, देश के अधिकतर मामलो में न्याय तभी जल्दी मिलता है जब वह घटना हाईलाइट होती है, सोशल मीडिया पर चर्चा होती है, वैशाली की घटना भी तभी चर्चा में आई जब बच्ची की मौत हो गई और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे लोगो ने घटना को लेकर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर लिखा। पटना विश्वविद्यालय समेत विभिन्न संगठनों ने कैंडल मार्च निकाला। तब जाकर पुलिस हरकत में आई है। घटना के जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया गया। अब कहा जा रहा है कि अगर कुछ दिन में गिरफ्तारी नहीं होती तो आरोपियों की संपत्ति कुर्क की जा सकती है।
अब सवाल उठता है कि बड़े मीडिया संस्थान क्या कर रहे हैं? क्या बड़े पत्रकारो ने इस घटना पर अपनी राय रखी, जवाब है नहीं। वह सिर्फ उन्हीं घटनाओं की चर्चा करते हैं जिससे उनका तय एजेंडा चलता रहे। मुसलमानों को आतंकी साबित करने, उन्हें बदमाश साबित करने पर पूरा जोर लगा देने वाले तमाम कथित राष्ट्रवादी पत्रकारों को ये नहीं दिखाई देता। जिहाद स्पेश्लिस्ट पत्रकार सुरेश च्वाहणके को भी ये घटना नहीं दिखेगी। क्योंकि यहां उसका जिहाद कहां सेट हो पाएगा। कुछ कहेंगे कि आप क्या निष्पक्ष हैं। तो उनको सीधा सा जवाब है भाई हम हाथरस भी कवर करते हैं, निकिता तोमर भी कवर करते हैं। गुलनाज को न्याय जब तक नहीं मिल जाता तब तक इस घटना पर स्टोरी करते रहेंगे।
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