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नोटा से भी कम वोट पाई पुष्पम प्रिया ने चुनाव लड़ने का हौसला दिखाया क्या ये कम है? 

 17 Nov 2020

फरवरी 2020 में बिहार के छोटे-बड़े अखबारों में एक फुल पेज ऐड छपा। लंदन से इकोनोमिक्स और पोलिटिकल साइंस की पढ़ाई करके बिहार लौटी पुष्पम प्रिया चौधरी ने खुद को बिहार का आगामी मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया। बिहार की स्थिर राजनीति में एकबारगी हलचल मच गई। किसी ने सिरे से खारिज कर दिया तो किसी ने उम्मीद के तौर पर देखा। आज चुनाव के परिणाम आ गए तो एकबार फिर से चर्चा शुरु हो गई कि पुष्पम प्रिया ने क्या हासिल किया। 

 

पुष्पम प्रिया ने दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा। पहली बांकीपुर, जहां 5,176 वोट हासिल करके वह तीसरे स्थान पर रही। दूसरी सीट बिस्फी, जहां उन्हें करीब 1500 वोट मिला जो नोटा से भी कम है। नतीजे सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जाने लगा। कहा जाने लगा कि जिसे बिहार की राजनीति की कोई समझ ही नहीं है वह सीधे मुख्यमंत्री बनने चली आई। किसी ने कहा, सिर्फ सुंदरता से चुनाव नहीं जीता जा सकता। कुछ ने सलाह देना शुरु कर दिया कि मैडम आपके बस का कुछ नहीं है, आप फिर से लंदन वापस चली जाइए। मतलब ऐसे तमाम कमेंट आए जो पुष्पम प्रिया के विरोध में थे। 

 

पुष्पम प्रिया ने चुनाव लड़ने का हौसला दिखाया क्या यह कम है? बिहार की परंपरावादी राजनीति से अलग हटकर कुछ करने की सोची क्या यह कम है? पुष्पम ने मुद्दा क्या बनाया याद है आपको? नहीं याद होगा। क्योंकि आपको बेहतर एजुकेशन, बेहतर हेल्थ सिस्टम और रोजगार मजाक लगता है। आप मान चुके हैं कि इन चीजों को सही करने का काम नेताओं का नहीं है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हमारे नेताओं ने जनता को इसकी आदत ही नहीं लगने दी है। जनता को आदत है कि अपनी जाति का विधायक हो। अपना कोई काम थाने-तहसील में रुके न, विरोधी डर कर रहे। बस यही चाहिए इसलिए चुन लेते हैं। 

 

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मैं बिहार की बुराई नहीं कर रहा हूं लेकिन ये सत्य है कि यहां के लोगों को अपने विधायक के अपराध व उसके बैकग्राउंड से कोई मतलब ही नहीं है। नवादा सीट से RJD की विभा देवी करीब 30 हजार वोट से जीत गई, विभा राजबल्लभ यादव की पत्नी है जो नाबालिग लड़की से रेप किया और अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन देखिए. विभा चुनाव लड़ती है और जनता सबकुछ भुलाकर उन्हें जिता देती है। वही जनता फिर सोशल मीडिया पर महिला सुरक्षा की बात करती है, महिलाओं के प्रति अपराध कम करने की बात करती है।

 

हम फिर से पुष्पम पर आते हैं। पुष्पम प्रिया में निश्चिततौर पर राजनीतिक परिपक्वता की कमी है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम उन्हें ट्रोल करें। पिछले दिनों आपने देखा होगा कि तेजस्वी यादव के साथ एक कार्यकर्ता सेल्फी लेना चाह रहा था उसे तेजस्वी ने किस तरह से हाथ खींचकर पीछे धकेल दिया। लेकिन हमें इससे क्या, हमने तो पहले ही अपना वोट बेच दिया है। हम मान चुके हैं कि बिहार में एनडीए व महागठबंधन के अलावा कोई तीसरा विकल्प नहीं हो सकता। कोई नया आता भी है तो उसे वोट कटवा बताकर खारिज कर देते हैं। बिहार आज अगर पीछे है तो इसकी बड़ी वजह यहां के नेता हैं, और अगर ये कहें कि बिहार को पीछे रखने में यहां की जनता भी कम दोषी नहीं है तो गलत नहीं होगा। 

 

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राजनीति में एक बेहतर पक्ष बनने से पहले मजबूत विपक्ष बनना पड़ता है। पुष्पम प्रिया की राजनीतिक इंट्री धमाकेदार रही है। जनता का भरोसा जीतना है तो उन्हें मैदान में डंटे रहना होगा। उन्होंने जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ा असल में वहीं बिहार की जरूरत है लेकिन अभी बिहारियों को वह जरूरत महसूस नहीं हो रही है। एक वक्त आएगा जब वह जंगलराज और सुशासन की लड़ाई से बाहर आएंगे और नए नेतृत्व का सोचेंगे। उस वक्त अगर पुष्पम प्रिया सामने खड़ी मिली तो जनता उन्हें स्वाभाविक रूप से स्वीकार करेगी। 

 

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