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उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों को किसने लूटा ??

 25 Sep 2020

अगर 1 रूपया दिल्ली से निकलता है तो 15 पैसा गांव में पहुँचता है - भ्रष्टाचार किस कदर देश में फैल चुका है उसको समझाने के लिए ये शब्द थे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के। 

इस भ्रष्टाचार का एक बार फिर सबूत मिला उत्तर प्रदेश में । और इस बार चर्चा का कारण बने बिजली कर्मचारी। दरअसल यहाँ पर करीब 45 हजार बिजली विभाग के कर्मचारियों ने अपने पीएफ के 2268 करोड़ रुपये निजी संस्था में फंस जाने के विरोध में 18  और 19  नवंबर को अपने कार्य का बहिष्कार किया।

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इसी के चलते राजधानी लखनऊ में लेसा (Lucknow Electricity Supply Administration) व मध्यांचल सहित सभी दफ्तरों के बिजली कर्मचारी व अभियन्ता शक्तिभवन मुख्यालय पर एकत्र होकर  विरोध सभा की। बिजली कर्मचारियों की सबसे बड़ी माँग यह है कि उनकी भविष्य निधि के फंसे हुए धन के भुगतान की जिम्मेदारी सरकार ले और साथ ही गजट नोटिफिकेशन जारी करे जैसा कि उसने वर्ष 2000 में किया था। इसी सिलसिले में जब विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे से बात की तो उन्होंने बताया कि कर्मचारियों का पैसा डूब गया है जिससे वह मानसिक तनाव में हैं। उनकी सरकार से यह माँग है कि वह नोटिफिकेशन जारी करके पूरी रकम को चुकाने का  उत्तरदायित्व ले।  

हालांकि अब उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) कर्मचारियों के फंसे पैसों को लौटाने का सरकार ने लिखित वादा भी  किया है। लेकिन किस तरह से अधिकारी अपने पद का फायदा उठाते हैं।   यह उजागर करते हुए शैलेन्द्र कहते हैं कि 'जो Power Corporation के Chairman होते हैं वही Trust के भी chairman होते हैं। अगर उनके Trust के chairman रहते इतनी बड़ी घटना हो जाए और दो -दो साल तक Trust की कोई meeting भी न हो , audit भी न हो ,तो मुख्य जिम्मेदार कौन है ?'

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 उन्होंने और वृस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि साल 2000 में भी बिजली विभाग के कर्मचारियों के provident fund का पैसा ऐसे ही सरकार ने निर्माण के कामों में खर्च कर दिया था। तब घोटाला नहीं हुआ था। लेकिन उनके लिए तो एक ही बात थी , तब भी पैसा खर्च हो गया था अब भी पैसा गायब हो गया है। 

उन्होंने यह भी बताया कि बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा धन निकासी पर रोक लगाये जाने के बाद इनमें से जीपीएफ ट्रस्ट के 1445.70 करोड़ रूपये और सीपीएफ ट्रस्ट के 822.20 करोड़ रूपये डूब गये हैं।यह तमाम धनराशि नियमों का उल्लंघन कर मात्र 7.75 प्रतिशत ब्याज दर पर दागी कम्पनी में लगायी गयी थी जो ब्याज दर राष्ट्रीयकृत बैंकों से भी कम है।लेकिन RBI ने जिस तरीके से दागी कंपनी DHFL के  Board of Directors को dissolve करके  अपनी तरह से कार्यवाही करना शुरू कर दिया उससे  High Court से यह मामला निकल गया है।

वहीं इस मामले में जांच कर रही इकोनॉमिक ऑफेंस विंग को बड़ी कामयाबी हासिल की है।

ईओडब्ल्यू ने अपनी तफ्तीश में फर्जी पाई गई 9 कंपनियों में से 5 के मालिकों का पता लगा लिया। अब इन मालिकों को पूछताछ के लिए ईओडब्ल्यू के दफ्तर में बुलाया गया।

जांच के दौरान एजेंसी को हरियाणा और दिल्ली में कुछ ठिकानों के बारे में भी पता चला है । यह ठिकाने पॉवर एंप्लाइज ट्रस्ट के पूर्व सचिव पीके गुप्ता के बेटे अभिनव और उसके साथी और फर्जी ब्रोकर फर्म के मालिक आशीष चौधरी से संबंधित है. ईओडब्ल्यू ने अब तक सामने आए सभी 14 ब्रोकर कम्पनियों के खातों को खंगालने का काम भी शुरू कर दिया है।

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वहीं इस पूरी घटना को कवर कर रहे एक स्थानीय पत्रकार ने इस घटनाक्रम के आरोपी पूर्व एमडी एपी मिश्र के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सपा सरकार के करीबी होने के कारण नियमों में बदलाव कर उन्हें प्रबंध निदेशक के पद पर सेवा विस्तार दिया जाता रहा। आमतौर पर इस पद पर किसी आईएएस को ही नियुक्त किया जाता है लेकिन एक इंजीनियर को यह पद मिलने से अखिलेश सरकार से उनकी नज़दीकी का पता साफ़ तौर पर नज़र आता है।

यूपी सरकार ने बात बढ़ जाने और कर्मचारियों के आक्रोश को देखते हुए भले ही उनके फंसे पैसों को लौटाने का लिखित वादा कर दिया हो । पर फिर भी यह सवाल उठता कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का दावा करने वाली सरकार के सामने एक के बाद एक लगातार घोटाले उजागर होते चले जा रहे हैं। आखिर कब तक सरकार अपने मनपसंद आधिकारियों को फायदा पहुँचाती रहेगी और आखिर कब तक कर्मचारियों और मजदूरों को आपने हक़ की इसी तरह से भीख माँगनी पड़ेगी ?