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क्या बापू को विस्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं नरेंद्र मोदी?

 24 Sep 2020

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश के एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी को फादर ऑफ इण्डिया बताया। इसके बाद से सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में इस बात की गूँज सुनाई दे रही है। इंडिया टुडे ग्रुप के चैनल आजतक ने अपने एक कार्यक्रम के लिए एक पोस्टर जारी किया। पोस्टर पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ लिखा था - इंडिया के पापा! 

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पब्लिक स्पेस में पहली बार पीएम मोदी को देश का बाप कहने का काम शायद संबित पात्रा ने किया था। कन्हैया कुमार भी उस शो में मौजूद थे। उन्होंने संबित को इस बात पर खूब लताड़ा। बात गाँधी, गोड्से और वंदे मातरम तक पहुँची। संबित ने पूरे शो में गोड्से मुर्दाबाद नहीं बोला।

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महात्मा गाँधी के बारे में कहा जाता है कि उनकी एक आवाज़ पर आम लोगों के साथ-साथ उस वक्त के तमाम रसूख़दार लोग भी अभियान में जुड़ जाते थे। हिंदु हों या मुस्लिम, सवर्ण हों या दलित - शायद ही कोई वर्ग महात्मा गाँधी की बात काट पाता था। उनका बड़े से बड़ा आलोचक भी उनसे मिलकर अभिभूत हो जाता था। चाहकर भी कोई महात्मा गाँधी से उलट जाना किसी के लिए आसान नहीं था। एक अदृश्य जुड़ाव उन्हें महात्मा से जोड़े रखता था। ये गाँधी की स्वीकार्यता थी। नरेंद्र मोदी उसी महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोड्से की विचारधारा को मानने वाली एक बहुत बड़ी भीड़ के नेता हैं।

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नरेंद्र मोदी मंच से अहिंसा की बात कर रहे थे, और उनकी समर्थक भीड़ मॉब लिंचिंग कर रही थी। नरेंद्र, गाँधी की प्रतिमा पर फूल चढ़ा रहे होते हैं, और उनकी विचारधारा से जुड़े नेता गोड्से का महिमामंडन कर रहे होते हैं। नरेंद्र मोदी कहते हैं - बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ…लेकिन उन्हीं की पार्टी के नेता बलात्कार जैसे संगीन मामलों में फँसे हुए हैं। कई मौकों पर नरेंद्र मोदी के मानने वालों की करनी नरेंद्र मोदी की कथनी से बिल्कुल उलट दिखती है। लेकिन आलोचना कहीं नहीं है। इसका मतलब ये है कि नरेंद्र मोदी को स्वीकार तो करना पड़ रहा है लेकिन वो स्वीकार्य नहीं हैं।  

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बहरहाल, भारत विचारधारा के स्तर पर 360 डिग्री परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। गाँधी और गौतम का देश कहे जाने वाले भारत में - 

  • गोड्से खुलेआम पूजा जा रहा है। 
  • हिंसा स्वीकार्य हो गई है।
  • कल्याणकारी राज्य की बातें पीछे छूट रही हैं।
  • अविश्वास हावी हो रहा है।

 

शासन के लिहाज से भी दौर अच्छा नहीं है। अर्थव्यवस्था अपने सुबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। रोज़गार के मोर्चे पर उम्मीदें लगातार टूट रही हैं। व्यापार पर अविश्वास हावी हो चला है। जातीय और धार्मिक संघर्ष भी समय समय पर दिखने लगता है। लोकतंत्र लंगड़ाता हुआ दिख रहा है। इसे किसी (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया)  का सहारा नहीं मिल रहा है। माहौल कुछ ऐसा बन गया है कि खुद जनता, जनतंत्र के विरोध में दिखाई देने लगी है। 

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इस माहौल में राजनैतिक लाभ की चेष्टाओं में लगे एक राजनेता, सिद्धांतों का सौदा कर चुकी मीडिया के एक तबके के कुछ पत्रकारों और अपने मातहत काम करने वालों के द्वारा फादर ऑफ नेशन कहलाया जाना पीएम मोदी को अखरना चाहिए था, जो कि नहीं हुआ। अगर पीएम मोदी इस माहौल में फादर ऑफ इण्डिया जैसे तमगे को उचित मानते हैं तो भी एक बार उन्हें यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए। क्योंकि हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है!!!!