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आखिर संसद तक कैसे पहुंच जाते हैं आरोपी ?

 24 Sep 2020

इन दिनों उन्नाओ रेप केस में हुई अमानवीय प्रतिक्रियाओं ने एक बार फिर समाज में महिलाओ की दयनीय स्तिथि और लाचारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पर ज्यादा दुःख तब होता है जब ऐसी स्थिति के ज़िम्मेदार वो हों जिन्हे हमने खुद अपना नेतृत्व करने के लिए चुना हो। लेकिन कुलदीप सेंगर ऐसे अकेले नेता नहीं हैं जिनके खिलाफ रेप या फिर डराने धमकाने और हत्या के चार्जेज हों, आज भी कोर्ट में ऐसे कई केस पेंडिंग हैं जिनमे नेताओं के खिलाफ यौन शोषण और महिलाओं के खिलाफ शोषण के केसेस पेंडिंग हैं। आंकड़ों की माने तो देश में तकरीबन 48 सांसद और विधायकों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ शोषण के मामले चल रहे हैं जिनमे से 14 नेता BJP से, 7 Shiv Sena से और 6 TMC से हैं।
इसके अलावा पिछले 5 सालों में 40 ऐसे नेता रहे जिनपर रेप के आरोप होने के बावजूद भी उन्हें लोक सभा, राज्य सभा और विधान सभा के टिकट दिये गए।देश में रेप केस के मामलों वाले सबसे ज्यादा, 65 नेता महाराष्ट्र में, 62 नेता बिहार में और 52 नेता बंगाल में हैं।

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हैरानी की बात ये है की ऐसे घिनोने आरोपों और खराब छवि के बावजूद भी ये नेता समाज और सत्ता में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। इसमें बहुत बड़ी गलती राजनीतिक पार्टियों की भी हैं जो एक नेता की छवि की जगह उसको टिकट पैसे, दबंगई और वोट बैंक के बेस पर देती है। इसमें गलती हमारी भी है जो नेताओं का नाम ना देखकर केवल पार्टी चिन्हों पर अपना वोट दे देते हैं।जिसकी चलते अब भी पिछले 5 सालों में भाजपा ने 47, बसपा ने 35 और कांग्रेस ने 24 ऐसे नेताओ को टिकट दिए हैं जिनके खिलाफ महिलाओं के साथ शोषण के केस दर्ज हैं।

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एक तरफ पार्टियां महिला सशक्तिकरण कैंपेन चलाती हैं, महिलाओ को राजनीति में आरक्षण देने की बात करती हैं लेकिन दूसरी तरफ अपने स्वार्थ के लिए उन्ही नेताओं को टिकट देती हैं जिनके खिलाफ रेप और हत्या जैसे मामले हों, और जो महिला नेताओं पर अभद्र टिप्पणीयां करते हों।
अगर एक तरफ पार्टियां, टिकट बांटने और चुनाव लड़ने की प्रतिक्रिया को आयु बद्धित कर सकती हैं तो क्या उन्ही पार्टियों को चुनाव के लिये चुनी जाने वाले प्रतिनिधियों की साफ़ छवी का ध्यान नही रखना चाहिए ? और अगर पार्टियां नहीं भी रख रहीं तो ये हमारा उत्तरदायित्व बनता है की संसद तक केवल साफ़ छवी और समाज सेवा के लिए तत्पर नेता ही पहुचें। क्यूंकि ऐसे आंकड़े और घटनाएं देखकर हमे ये भी सोच लेना चाहिए कि अगर देश के वो नेता जो सांसद में आवाम की आवाज़ हैं और सोशल जस्टिस के लिए खड़े होते हैं वही ऐसी छवि वाले होंगे तो समाज में न्याय स्थापना की उम्मीद की भी कैसे जा सकती है।