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देश में कानून का राज है भी या नहीं?

 13 Oct 2020

पहले ममता के गुण्डे अमित शाह की रैली पर हमला करते हैं और बाद में अमित शाह का कैडर ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़कर बंगाल को अस्थिर करने की कोशिश करते हैं। जैसा कि दोनों पार्टियाँ एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। इन चुनावों में बंगाल ने मौतें भी देख ली हैं। कांग्रेस का कार्यकर्ता मारा जा चुका है। कहानी क्या है, ये बताने से पहले एक शेर सुनाते हैं शायर हैं - अभिषेक शुक्ला -

उससे कहना कि धुआँ देखने लायक होगा
आग पहने हुए जाऊँगा मैं पानी की तरफ़

बंगाल की मुसीबत ये है कि यहाँ कोई भी पानी नहीं। आग, आग की तरफ बढ़ रहा है। इसलिए केवल धुआँ उठने का सवाल पैदा ही नहीं होता। ये समय बंगाल के तबाह होने का समय है। लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाती हुई ममता और अमित शाह दोनों मिलकर लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं।

बंगाल की राजनीति हिंसा के साये में पली-बढ़ी। दशकों तक लेफ्ट पार्टियों का शासन बंगाल में रहा। लेकिन सिंगूर और नंदीग्राम के बदौलत ममता ने 2011 में वामपंथियों से बंगाल छीन ली। 2014 में ममता लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी। मजबूत जनाधार, वक्तृत्व कौशल और संख्याबल के बूते ममता उस कतार में अग्रणी दिखी जो मोदी विरोध मे खड़ी थी। इन चुनावों से ठीक पहले ममता ने संयुक्त विपक्ष की कोशिशों के तहत विपक्ष के तमाम दिग्गजों को एक मंच पर आमंत्रित किया।

मोदी की विजय रथ के लिए ममता एक सशक्त ब्रेकर नज़र आ रही थी। सो बीजेपी के लिए ज़रूरी था कि उस ब्रेकर को तोड़ा जाए। शुरुआत काफी पहले हो गई थी। लेकिन इन चुनावों में गति मिली पीएम मोदी के इस बयान के साथ - दीदी ने मुझे मिठाई और कुर्ते भिजवाए थे। ममता इस बात पर बिफरी और बोला कि वो मोदी के लिए कंकड़ और कीचड़ की मिठाई भेजेंगी। मोदी ये कहते हुए बयानों में बाज़ी मार गए कि बंगाल महान लोगों की मिट्टी रही है। वो मिठाई मेरे लिए प्रसाद होगी।

लेकिन जिन महापुरुषों की मिट्टी को मिठाई कहा उन्हीं में से एक ईश्वरचंद की मूर्ति तोड़ी जा चुकी है। मोदी ने अपने एक बयान में कहा कि तृणमूल के चालीस से अधिक विधायक उनके संपर्क में हैं। इस पर टीएमसी के डेरेक-ओ-ब्रायन ने पीएम मोदी को आड़े हाथों लिया।

लोकतंत्र का हवाला देते रहने वाली ममता ने आधी रीत को बीजेपी नेताओं की धर-पकड़ करवा और उन्हें गैरकानूनी हिरासत में रखा हुआ है। इसके बाद ममता बोलीं कि वो एक सेकंड के अंदर बीजेपी दफ्तर पर कब्ज़ा कर लेने में सक्षम हैं। इससे पहले भी उन्होंने कहा कि वो बीजेपी को चुनावों तक छोड़ेंगी नहीं और इंच-इंच का बदला लेंगी।

मसअला ये है कि देश में कानून का राज है भी या नहीं? सवाल ये है कि लोकतंत्र को बचाने की बात कर रही ममता ने क्या अपनी कुर्सी का नाम लोकतंत्र रखा हुआ है? सवाल ये भी है कि क्या पीएम मोदी सच में संघीय स्ट्रक्चर को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं? आग बढ़ने लगी है। लोकतंत्र खाक होता नज़र आ रहा है।