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सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी फ़ैसले पर जस्टिस नागरत्ना ने दिया 4:1 के साथ विरोध मत
05 Jan 2023
नोटबंदी पर 4:1 से फैसला आया है। 4 जजों ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है वहीं केवल एक जस्टिस नागरत्ना जी ने डिसेंट यानी ख़िलाफ़ में फैसला दिया है। विरोध में दिए गए फैसले के अंतर्गत जितनी बातें लिखी गई है, जनता के लिए वही जानना महत्वपूर्ण है। नागरत्ना जी ने सत्य लिख दिया है, बाकी जनता अपने विवेक का प्रयोग करे।
जस्टिस नागरत्ना का मत --
इस दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि "आरबीआई द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड को देखने पर मुझे वहां सरकार ने 500 और 1000 नोटों की कानूनी निविदा को वापस लेने की सिफारिश की है", "सिफारिश प्राप्त की गई " जैसे वाक्य लिखे दिखते हैं। जो यह साफ बताता है कि नोटबंदी का फैसला रिज़र्व बैंक द्वारा स्वतंत्र रूप से नहीं लिया गया था। जस्टिस नागरत्ना आगे लिखती हैं कि रिजर्व बैंक के पास इतने गंभीर मुद्दे पर अपना विवेक लगाने का समय तक नहीं था। यह प्रस्ताव बैंक को 7 नवंबर 2016 के पत्र के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा दिया गया था और 24 घंटे के भीतर ही 500 रुपये और 1000 रुपये के बैंक नोटों की सभी सीरीज का डिमोनेटाइजेशन (नोटों चलन बन्द) कर दिया गया।
RBI की शक्तियां --
नियम कानून के विशेषज्ञों के अनुसार "RBI की धारा 26(2) के तहत उसे यह शक्ति प्राप्त मिली है कि बैंकों की सिफारिश पर करेंसी नोटों की एक विशेष सीरीज को बैन कर सकती है।" वहीं इसी एक्ट को लेकर जस्टिस नागरत्ना अपने फैसले में लिखती हैं कि "RBI के धारा 26(2) के अनुसार सिफारिश केवल करेंसी नोटों के एक सीरीज के लिए हो सकती है, ना कि करेंसी नोटों की पूरे नोटों की सीरीज के लिए।" न्यायाधीश ने कहा कि आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) में "कोई भी" शब्द की व्याख्या "सभी" के रूप में नहीं की जा सकती है, जैसा कि बहुमत के फैसले में कहा गया है। अतः "केंद्र सरकार की ऐसी सिफारिश शून्य है।"
RBI ने किया या भाजपा ने करवाया --
केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा यह सिफारिश भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के तहत बैंक से उत्पन्न नहीं हुई थी। उल्टे मोदी की भाजपा सरकार द्वारा बैंक को प्राप्त की गई थी, केंद्र सरकार द्वारा दिया गया यह प्रस्ताव बैंक के केंद्रीय बोर्ड से उत्पन्न होने वाले प्रस्ताव के समान नहीं है और ना ही मोदी सरकार को इस अधिनियम के तहत इसका अधिकार था। जस्टिस नागरत्ना ने साफ कहा कि "आरबीआई द्वारा इस तरह के प्रस्ताव को दी गई सहमति को आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत "सिफारिश" के रूप में नहीं माना जा सकता है।"
जनता का मत --
केंद्र सरकार के कहने पर नोटों की सभी सीरीज का डिमोनेटाइजेशन (श्रृंखला का विमुद्रीकरण) बैंक द्वारा किसी विशेष सीरीज के डिमोनेटाइजेशन की तुलना में कहीं अधिक गंभीर और बड़ा मुद्दा है। इसलिए, यह मोदी सरकार को ये काम कार्यकारी अधिसूचना के बजाय कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए था। इसी के साथ इस मामले का हल सरकार के बजाय संसद के जरिए निकालना जाना चाहिए था।
निष्कर्ष में वह कहती हैं कि "इस उपाय को केवल विशुद्ध रूप से कानूनी विश्लेषण पर गैरकानूनी माना गया है, ना कि डिमोनेटाइजेशन के उद्देश्य पर।" वहीं सत्य जनता के सामने है अब उन्हें फैसला करना है।
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