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जातिगत भेदभाव नहीं, आरक्षण खत्म करना चाहती है भाजपा !

 28 Dec 2022

भारत दुनिया का दूसरा बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहां तक़रीबन 130 करोड़ आबादी रहती है। इस देश में राजनीतिक तौर पर व्यक्ति का मूल्य बराबरी का होते हुए भी सामाजिक तौर पर व्यापक-गैर-बराबरी है, जिसका एक प्रमुख कारण जाति-भेदभाव है। जाति-भेदभाव के कारण भारत में बहुत बड़ी आबादी वर्तमान समय में भी वंचित और अधिकार विहिन है। भारतीय राज्य में हर स्तर पर उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है, इसलिए सभी को अवसर की समानता देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है। भारतीय संविधान के अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति को उनकी जनसख्यां के अनुपात में और पिछड़े वर्ग को 27% आरक्षण देकर सभी को अवसर की समानता प्रदान करता है। जाति-भेदभाव के खिलाफ प्रतिनिधित्व देकर ही भारत विकसित और प्रगतिशील बन सकता है। वर्तमान में यही सकारात्मक तरीका सरकार, विधान-मंडल, न्यायपालिका, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, मीडिया, सिनेमा और खेल हर क्षेत्र में सभी की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है, ताकि एक प्रगतिशील भारत बनाया जा सके। समता और प्रगति के इस प्रयास को 2014 के बाद से समरसता और अंत्योदय के नाम पर खत्म करने के लिए जानबूझकर कवायद शुरू की गई। "RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बिहार के चुनाव में आरक्षण खत्म करने की बात खुले तौर पर बोली थी वही बीजेपी राज्य-दर-राज्य और देश में इस बात को लागू कर रही है।"  


mohan bhagwat

 

छत्तीसगढ़ को मिला आरक्षण-- 

उदाहरण छत्तीसगढ़ राज्य का है, मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में यथावत 16% ST, 20% आदिवासी और 14% ओबीसी आरक्षण लागू कर दिया गया था, जिसे राज्य की जनसंख्या के अनुपात में बदला जाना था। 2003 से छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार ने 2011 तक कोई बदलाव नही किया। 2012 में विधानसभा चुनाव से पूर्व लाभ लेने की दृष्टि से ST और SC को जनसंख्या के अनुपात में 12% SC और 32% आदिवासी को आरक्षण दिया गया। OBC जिसकी आबादी छत्तीसगढ़ में लगभग 50% है उनका 14% आरक्षण जैसा का जैसा रखा गया, इसी के साथ कुल 58% राज्य में आरक्षण लागू हुआ।  


reservation

 

आरक्षण हुआ बंद --

19 सितंबर 2022 को छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण के नियम को HC बिलासपुर ने यह कहते हुए रद्द कर दिया कि "2012 में तत्कालीन (बीजेपी) सरकार ने छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण लागू करते हुए जरूरी आंकड़े कोर्ट में जमा नहीं किए थे, जबकि HC ने उस दौरान 3 बार सरकार से इसकी जानकारी मांगी थी।" बीजेपी सरकार के पूर्व गृह मंत्री ने मीडिया में कहा कि "मैने विस्तार से रिपोर्ट दिया था पर पता नहीं रमन सिंह की सरकार ने इसे जमा क्यों नहीं किया।" वही "वतर्मान कांग्रेस सरकार ने कोर्ट के समक्ष सारे आंकड़े और तथ्य साझा करने की अनुमति मांगी तो कोर्ट ने मना कर दिया।" आख़िरकार HC के फैसले के कारण छत्तीसगढ़ राज्य में आरक्षण सन 2000 की स्थिति में पहुंच गए।  


HC Chhattisgarh

 

फिर आरक्षण की सौगात -- 

इस अब चरणों के बाद 2018 में छत्तीसगढ़ में भुपेश बघेल बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनकर आई और 15 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ के मुख़्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में 27% ओबीसी आरक्षण को लागू कर दिया। इस निर्णय पर छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट ने कहा कि "एनएसएसओ के एक सर्वे को आधार बना कर आरक्षण का दायरा 27% किया गया है। इसके लिए यह आंकड़े अपर्याप्त है और इस कारण रोक लगा दी थी।" फिर इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने आर्थिक रुप से कमज़ोर सामान्य जातियों को 10% आरक्षण की सौगात देने को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और आगे कहा कि "यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है।" 2019 में ओबीसी आरक्षण पर रोक के बाद से भूपेश सरकार ने आंकड़े तथ्य के पर आयोग बनाकर काम शुरू कर दिया था। 19 सितंबर 2022 को छत्तीसगढ़ कोर्ट द्वारा 58% आरक्षण रोक दिए जाने तक भूपेश सरकार ने आंकड़ों सहित विधिक और प्रशासनिक तैयारी पूरी कर ली थी और कांग्रेस सरकार अध्यादेश लाने के लिए कार्य शुरु कर दिया। साथ ही सरकार ने सभी लोक सेवा आयोग और व्यापम की परीक्षाएं स्थगित की और नए विज्ञापनों पर रोक लगी। इसी बीच छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुइया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मामले में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया और यह कहा कि "बिल पारित होते ही मैं उस पर हस्ताक्षर करूंगी।" 24 नवंबर 2022 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कैबिनेट में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी दी। साथ ही इस विषय को 9वीं अनुसूची में डालने का संकल्प भी पारित किया गया, ताकि आरक्षण को कोर्ट द्वारा पुनः रोका ना जा सके। 


Anasuya Uike

 

नए सत्र की शुरुआत और अटका रहा बि -- 

सरकार ने संवैधानिक पद की गरिमा रखते हुए राज्यपाल के कहें अनुसार सत्र बुलाने की अनुमति मांगी। 9 नवंबर को राज्यपाल ने 1 और 2 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए सरकार को अनुमति दे दी। 2 दिसंबर 2022 को भाजपा के विधानसभा में तरह-तरह के विरोध के बाद विधानसभा से आरक्षण संशोधन विधेयक और 9वीं अनुसूची संबधी प्रस्ताव पारित हो गया। फ़िर उसी दिन शाम को भूपेश सरकार के मंत्रीरवींद्र चौबे के नेतृत्व में मंत्रियों ने विधेयक लेकर राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए गए। "इस विधेयक में SC को 13%, ST को 32%, OBC को 27% और EWS के लिए 4% आरक्षण का प्रविधान किया है, परंतु 28 दिसम्बर तक बिल पर हस्ताक्षर तक नहीं हुए है।" इस पूरे घटनाक्रम में छत्तीसगढ़ के 9% जनता का नुकसान हो रहा है। राज्यपाल आदिवासी समाज से आने के बावजूद बिल पर हस्ताक्षर नहीं कर रही है, जिसका कारण RSS है और संघ के लोग नहीं चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ के लोगों को उनका अधिकार मिले। 


new reservation bill passed

 

वर्तमान स्थिति --

आमतौर देखें तो छत्तीसगढ़ राज्यपाल और राष्ट्रपति आदिवासी समाज से हैं और प्रधानमंत्री के कहें अनुसार वे स्वयं पिछड़े समाज से आते हैं। ऐसे में आदिवासी और पिछड़ों को अधिकार देने वाला विधेयक के रुकने का सवाल ही नहीं उठता। राज्यपाल हस्ताक्षर करती और दूसरे दिन प्रधानमंत्री जी, राष्ट्रपति महोदया को प्रस्ताव भेजकर विधेयक को 9वीं अनुसूची में शामिल कर करवा देते। इसका दूसरा पक्ष यह है कि तीनों संघ से आते है और संघ में 125 साल में कोई आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक या महिला कभी सरसंघचालक नहीं बनी है। ऐसे में किसी राज्य में उनका प्रतिनिधित्व हो, यह संघ को कभी स्वीकार नहीं हो सकता है। 


Chhattisgarh Politics

 

वहीँ पर भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस भी पूरी ताकत से लड़ रही है, उन्होंने "3 जनवरी 2022 को राज्यपाल भवन को घेरने का आह्वान किया है।" छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज और साहू समाज ने बीजेपी और राज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और छत्तीसगढ़ में न्याय की लड़ाई जारी है।  


BHPESH BAGEL

 

इसी बीच एक खबर उत्तरप्रदेश से मिली है कि निकाय चुनाव में बीजेपी ने आंकड़ो की गड़बड़ी कर दी और कोर्ट ने OBC आरक्षण खत्म करने का फैसला सुना दिया है।झारखण्ड का बिल भी राष्ट्रपति ने रोक कर रखा हैं। 


Uttar Pradesh civic elections

 

देश भर में अवसर की समानता, न्याय और बराबरी पर यकीन रखने वाले कर्मयोगी जनता को संघ की नीति साफ दिखाई दे रही है। जनता समझ रही है कि "संघ मतलब आरक्षण की अंत, बीजेपी मतलब ओल्ड पेंशन-स्कीम में रुकावट, मोदी जी मतलब MSP और मंडी बन्द होना है।" भारत के लोग जनता होने का मतलब 2023 और 2024 में जरूर बताएंगे। 


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