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पंडित नेहरू की आलोचना करना आसान है लेकिन चाचा नेहरू बनना कठिन ...!
14 Nov 2022
पंडित नेहरू या चाचा नेहरू -
14 नवंबर 1889 को मोतीलाल नेहरू के घर पैदा हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू को मानो राजनीति विरासत में मिली हो, क्योंकि राजनीति में गहरी रूचि थी। सर्वप्रथम 1912 में बांकीपुर (बिहार) कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और बहुत ही कम समय में 1918 में कांग्रेस महासमिति के सदस्य बने और 1922 में इलाहबाद नगर-पालिका के अध्यक्ष। उन्होंने 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया। 1920-22 के असहयोग आंदोलन के सिलसिले में उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। पंडित नेहरू सितंबर 1923 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने और 1926 में इटली, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी और रूस का भी दौरा किया। वह महात्मा गांधी के साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आंदोलन में उतरे। चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात हो उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे और इसीलिए आज़ादी के बाद वह उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे। सन् 1920 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया। 1923 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव चुने गए।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री -
वह महात्मा गांधी के साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और उनकी मेहनत ने उन्हें भारत की स्वतंत्रता के बाद पहला भारतीय प्रधानमंत्री बनने में सक्षम बनाया। लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को 15 अगस्त, 1947 स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। 1946 में सहमत योजना के कारण प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव हुए और विधानसभाओं के सदस्यों ने संविधान सभा के सदस्यों को चुना। कांग्रेस ने विधानसभा में अधिकांश सीटें जीतीं और नेहरू के प्रधान मंत्री के रूप में अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया।जवाहरलाल नेहरू ने लगभग 17 वर्षो तक देश के प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री की जिम्मेदारियां निभाई थी, इससे कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति का निर्माण हुआ था, इसलिए उनको भारतीय विदेश नीति का जनक, विदेश नीति के निर्माता भी कहा जाता है।
भारत-पाकिस्तान संबंध -
देश विभाजन के ठीक बाद से ही भारत-पाकिस्तान संबंध बेहद गंभीर और खराब हो गए और सीमा पर तो दोनों देशों की सेनाओं के बीच युद्ध चलता रहा। मामला बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के पास चला गया और दोनों देशों की सरकारों ने आपस में सहकारी संबंध बनाने की कोशिश की। वर्ष 1960 में नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिंधु-नदी जल -संधि पर हस्ताक्षर करके लंबे विवाद को सुलझा लिया।
नेहरू की विदेश नीति -
विदेश नीति वह नीति या दृष्टिकोण है, जिसके द्वारा कोई राष्ट्र विश्व के अन्य राष्टों के साथ व्यवहार करता है जिसमें संबंधों का निर्माण या उनसे दूरी अथवा अनुकूलता या प्रतिकूलता बनायी जाती हैं। विदेश नीति वह कला है जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शुद्ध आधार प्रस्तुत करती हैं।देश की संप्रभुता की रक्षा, राष्ट्रहित की पूर्ति और आर्थिक हितों की पूर्ति से संबंधित होते है। इन्हीं उद्देश्य को मध्य नजर रखते हुए कोई भी देश अपने दश की विदेश नीति उसके सिद्धांतो को निर्धारित करता है। भारतीय विदेश नीति निर्माण में पंडित जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रभाव देखा जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति के तीन आधार स्तंभ बताए थे जैसे शांति, मित्रता और समानता।
नेहरू का भारत में योगदान -
आधुनिक भारत के वास्तुकार पं. जवाहर लाल नेहरू
- 1948 - आईटीआई,
- 1950 - योजना आयोग,
- 1951 - आईआईटी,
- 1952 - एम्स,
- 1954 - सेल,
- 1954 - बार्क,
- 1955 - भिलाई इस्पात संयंत्र,
- 1956 - ओएनजीसी,
- 1958 - डीआरडीओ,
- 1961 - आईआईएम,
- 1962 - इसरो,
- 1964 - भेल
बाल दिवस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया -
कांग्रेस के आधिकारी ट्वीटर अकाउंट से बल दिवस पर पंडित नेहरू को याद करते हुए लिखा कि "बच्चे बागों में खिली उस कली की तरह होते हैं। जिनकी परवरिश बहुत प्यार और नरमी से करनी चाहिए। कुछ ऐसे थे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू या यूं कहें बच्चों के 'चाचा नेहरू।"
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लिखा कि “कौन है भारत माता? इस विशाल भूमि में फैले भारतवासी सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। भारतमाता यही करोड़ों-करोड़ जनता है।” पंडित नेहरू के इन्हीं लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को दिल में ले कर चल रहा हूं, 'हिन्द के जवाहर' की भारत माता की रक्षा के लिए।
14 नवंबर 2022 को हम भारत के निर्माता जिस तरीके से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिस तरीके से आलोचना के घेरे में लाया जाता है। उन आलोचनाओं को नजर अंदाज़ करते हुए, उन्ही उपलब्धियों को नहीं याद रखना चाहिए आज़ाद भारत के निर्माण में उनका योगदान अतुलनीय है। नेहरु होना इतना आसन नहीं, जो नेहरू कर गए वो एक ऐतिहासिक निर्माण के रूप में देखा जाता है और उनके निर्माण की तुलना करना या आलोचना करना इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।
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